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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३४० ) में बौद्धों के विचार प्रचलित थे; इसलिए इस विचार में ऋषि को ये शब्द जोड़ने पड़े- "वेदान्त बौद्धमत नहीं है ।" अपने भारतीय दर्शन-शास्त्र (Indian Philosophy) के द्वितीय भाग के ४६३ पृष्ठ पर डा० सर्वपल्ली राधाकृष्णन् लिखते हैं - "वह (श्री गौड़पाद) कुछ बातों में अपने तथा बौद्धों के विचारों की समानता से भिज्ञ प्रतीत होते हैं। इस कारण उन्होंने अपने इन शब्दों को बल-पूर्वक कहा है कि यह विचार बौद्ध मत का नहीं है।" प्रसंग के इस भाग के विषय में आलोचकों में बहुत मतभेद पाया जाता है । विविध व्यक्तियों ने श्री गौड़पाद के इन शब्दों के (भगवान् बुद्ध के विचारों से उन के अपने विचार समानता नहीं रखते हैं) विभिन्न अर्थ किये तथा अनेक गूढ़ रहस्य बताये हैं। प्रोफ़ेसर भट्टाचार्य के विचार में इससे यह समझा जाना चाहिए कि "(भगवान्) बुद्ध ने यह शून्य के विषय में कहा है।" अन्य बौद्ध लेखकों के द्वारा इस का यह अर्थ लिया गया है कि "(भगवान् ) बुद्ध ने कुछ नहीं कहा क्योंकि इसे सहज-ज्ञान द्वारा समझा जाना है न कि व्याख्या द्वारा।" पहले बताये गये बौद्ध 'निहिल' कहलाए और दूसरे विचार वाले मुक्तिवादी (Absolutionists ) होगये। स्थूल रूप से बौद्ध-दर्शन तर्क-रूप में अद्वैतवाद के निकटतम है; फिर भी इन दोनों में सूक्ष्म भेद पाया जाता है जिसके कारण प्रत्युत्तम का अनुपम में रूपान्तरण हो जाता है । संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि सापेक्ष दर्शन का सहृदयता तथा उदासीनता से अध्ययन करने वाला विद्यार्थी निस्सन्देह यह परिणाम निकालेगा कि भगवान् बुद्ध ने परिपूर्ण परमात्मा को कभी अन्तिम वास्तविक-तत्त्व नहीं कहा यद्यपि बौद्धमत की विविध 'महायान' शाखाओं द्वारा पर-ब्रह्म या प्रात्मा के विषय में अद्वैतवादियों से बहुत कुछ मिलते-जुलते विचार प्रकट किये गये हैं। For Private and Personal Use Only
SR No.020471
Book TitleMandukya Karika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChinmayanand Swami
PublisherSheelapuri
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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