SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 337
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३२२ ) रहते हुए वह जिस आत्म-वशता, त्याग और ध्यान को प्रयोग में लाता रहा है अब उसकी कोई आवश्यकता नहीं रहती । आत्मानुभूति के बाद तो वह स्वभावतः अपने शरीर के प्रति उदासीन रहने लगता है । अब वह मिथ्याभिमान के संकीर्ण क्षेत्र में न रह कर अपरिमितता के उत्तुंग शिखर से आत्मानुभव का दिव्य तथा सनातन सन्देश सुनाने लगता है । विप्राणां विनयो ह्येष शमः प्राकृत उच्यते। दमः प्रकृतिदान्तत्वादेवं विद्वाञ्शमं व्रजेत् ॥८६॥ 'ब्रह्म' को अनुभव करने से ही ब्राह्मणों में स्वभावतः विनय और साथ ही मानसिक सन्तुलन (शम) प्राजाते हैं। कहते हैं कि सहज-स्वभाव से ये पूर्ण इन्द्रिय-दमन प्राप्त कर लेते हैं । जो व्यक्ति इस प्रकार शान्ति-निधान 'ब्रह्म' की अनुभूति कर लेता है वह स्थिरता तथा शान्ति से विभूषित हो जाता है । पिछले मन्त्र में श्री गौड़पाद ने आत्मा को अनुभव करने वाले नरशिरोमणि की कृत-कृत्यता की ओर संकेत किया था । अपने परिपूर्ण एवं विशुद्ध चेतन-स्वरूप को जान लेने के बाद उसके लिए और कुछ भी प्राप्त करना शेष नहीं रहता । इससे साधकों के मन में यह सन्देह हो सकता है कि क्या परिपूर्णता प्राप्त करने वाले महात्मा के लिए कम से कम नम्रता, प्रेम, सहनशीलता, दया आदि सद्गुणों को, जो परिपूर्णता के विशिष्ट अंग हैं, नियमित रूप से उपयोग में लाने का अभ्यास करते रहना आवश्यक होता है। इस मन्त्र में श्री गौड़पाद हमें स्पष्टतया बता रहे हैं कि एक आत्मानुभवी व्यक्ति के लिए इन गुणों में अभ्यासरत रहने की क्यों आवश्यकता नहीं होती और वह यज्ञादि के बन्धन में क्यों नहीं पड़ता । इस मनुष्य में ये गुण स्वयं विद्यमान् रहते हैं। वास्तव में धर्म-शास्त्रों में जिन नैतिक नियमों, धार्मिक जीवन और पवित्रता का वर्णन किया गया है उनका मान-दण्ड इन सन्त-महात्माओं के जीवन के विविध पहलुओं को देखने पर निर्धारित होता रहता है । For Private and Personal Use Only
SR No.020471
Book TitleMandukya Karika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChinmayanand Swami
PublisherSheelapuri
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy