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( २६६ ) स्वप्न की वस्तुओं को अनुभव करना स्वप्न-द्रष्टा के लिए संभव नहीं है क्योंकि उन्हें इस (अनुभव) के लिए बहुत सीमित समय मिलता है । साथ हो निद्रा से जग जाने पर वह (स्वप्नद्रष्टा) अपने आपको स्वप्न वाले स्थान पर नहीं पाता (अर्थात् वह अपनी शय्या पर ही लेटा होता है)। __स्वप्न को अवास्तविक सिद्ध करने के लिए यहाँ दो और युक्तियाँ दी गयी हैं । वेदान्त के विचार का विरोध करने वाले कहते हैं कि स्वप्नद्रष्टा स्थूल शरीर त्याग करके अनुभव करने वाले स्थान पर जा कर वस्तुओं का उपभोग करता है । इस तरह भारत में अपने घर में लेटा हा एक व्यक्ति न्यूयार्क (अमेरिका) में रहने वाले अपने किसी मित्र को स्पप्न में देख सकता है । स्वप्न को यथार्थ मानने वालों की दृष्टि में वह मनुष्य भारत से अमेरिका पहुँच कर उस व्यक्ति (मित्र) के संपर्क में पाया होगा। सामान्य बुद्धि रखन वाला मनुष्य भी इस बात को भली भाँति जानता है कि इतने थोड़े समय में उसका भारत से अमेरिका (न्यूयार्क) जाना किस प्रकार संभव हो सकता है । उसकी आवाज़ सुन कर जिस क्षण उसकी प्रेयसी (पत्नी) उसे जगाती है तब वह अाँखें खोल देता है और उसे अमेरिका में (स्वप्न) में जाने की घटना सुनाने लगता है।
क्या कोई व्यक्ति इस बात को मान सकता है कि इतन समय में (जबकि एक तेज से तेज़ वायुयान को भी भारत से अमेरिका पहुँचने में कई घंटे लगते हैं) वह भारत से अमरीका जाकर (अपनी पत्नी द्वारा जगाये जाने पर) अपने कमरे में कैसे लौट कर पा सकता है ? इसलिए स्वप्न. द्रष्टा कहीं और नहीं जा सकता। वास्तव में वह मनुष्य अपने अमेरिका में रहने वाले मित्र के विषय में उस विचार की पुनरानुभूति करता है जो कुछ काल से वासना बनकर अव्यक्त रहा है ।
यदि इस बात को हम मान भी लें कि स्वप्न-द्रष्टा स्थान स्थान पर घूमता रहता है तो यह सिद्ध करना कैसे संभव होगा कि वह जगने पर
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