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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २५१ ) होती है तो इन दोनों में से किस का जन्म पहले हुआ और किस पर दूसरे की उत्पत्ति निर्भर रहती है ? यद्यपि कारण और कार्य में कोई सम्बन्ध नहीं रहता तो भी विरोधी यह कह सकते हैं कि कारण तथा कार्य में कोई कारण सम्बन्ध न होने पर भी ये दोनों अन्योन्याश्रित रहते हैं । इस विचार के विषय में श्री गौड़पाद यह प्रश्न करते हैं कि इन दोनों (कारण और कार्य) में कौन पहले रहता है । जब तक इस बात को स्पष्ट नहीं किया जाता तब तक इनकी पारस्परिक निर्भरता को सिद्ध नहीं किया जा सकता । अशक्तिरपरिज्ञानं क्रमकोपोऽथवा पुनः । एवं हि सर्वथा बुद्धः श्रजाति परिदीपिता ॥ १६॥ कारण और कार्य के विषय में उत्तर देने में 'असमर्थता' ' क्रमानुगमन स्थापित करने में असमर्थता' - - इन सब के कारण विद्वान् प्रजातवाद के अपने सिद्धान्त पर दृढ़ रहते हैं । इन तर्कों में असंगति पाने के कारण वेदान्त-शास्त्र के प्रखर बुद्धि विद्यार्थी और श्रात्मानुभूति वाल विद्वान् 'कारण' तथा 'कार्य' में कोई पारस्परिक सम्बन्ध नहीं मानते । इस लिए श्री शंकराचार्य का यह कथन मान्य है कि "इन वाद-विवादों की प्रसंगति को अनुभव करते हुए बुद्धिमान विद्वान् अजातवाद को स्वीकार कर लेते हैं ।" माण्डूक्य कारिका के टीकाकार (श्री गौड़पाद) इसी तथ्य को समझाने का यत्न कर रहे हैं । बीजाङ्क राख्योः दृष्टान्तः सदा साध्यसमो हि सः । ७ न हि साध्यसमो हेतुः सिद्धो साध्यस्य युज्यते ॥२०॥ अभी तो बीज तथा अंकुर ( इन दोनों में पहले कौन था ) के उदाहरण को सिद्ध करना शेष है । जिस उदाहरण को अभी चरितार्थ नहीं किया जा सका भला उसका किसी अन्य समस्या को हल करने के लिए कैसे उपयोग हो सकता है ? ऐसा मालूम पड़ता है कि सत्संग में आये हुए श्रोताओं में से कुछ महाशय For Private and Personal Use Only
SR No.020471
Book TitleMandukya Karika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChinmayanand Swami
PublisherSheelapuri
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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