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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir । २३५ ) मैं उस योग को नमस्कार करता हूँ जिसे 'अस्पर्श-योग' कहा जाता है, जिसे शास्त्रों के द्वारा पढ़ाया जाता है, जो सबके सुख को बढ़ाने वाला तथा सबका हितैषी है और साथ ही जो सब विवाद और विरोध से रहित है । ___ज्ञान के अधिष्ठातृ-देव की वन्दना करने के बाद प्राचार्य अब उस योग को नमस्कार करते हैं जिसके द्वारा उन्होंने निज प्रात्मा की परमावस्था को प्राप्त किया । शास्त्रों ने इस उक्ति की घोषणा की है और धुरंधर विद्वानों ने इसका समर्थन किया है कि एक व्यक्ति प्रात्मानूभूति करने पर आत्मा का स्वरूप ग्रहण कर लेता है । इसके अनुसार एक सिद्ध पुरुष को वन्दना करने से हम परमात्मा (लक्ष्य) को नमस्कार करते हैं । हिन्दू दर्शन-शास्त्रों में साध्य (साधन) को भी उतना महत्व दिया जाता है जितना लक्ष्य : ध्येय) को । प्रार्य तो उस सनातन संस्कृति के अनुयायी है जिसमें साधन तथा साध्य समान पवित्रता रखते हैं । इसलिए ज्ञान-मार्ग की विशेष रूप से पृथक् वन्दना करना श्री गौड़पाद का उपयुक्त एवं मान्य कार्य है । 'अस्पर्श योग' को विस्तार से व्याख्या पहले की जा चुकी है । प्रात्म-परिपूर्णता के मार्ग पर चलते हुए सफलता प्राप्त करने के लिए प्रत्येक साधक को किन विशेषताओं का समावेश करना चाहिए उन्हें बड़े अर्थपूर्ण ढंग से बताया जा चुका है। संसार में जो कार्य किया जाता है, वह प्रसन्नता (सुख) अथवा हित के लिए होता है । यह जरूरी नहीं कि सुख के लिए किये गये कार्य 'हित' की दृष्टि से भी अनुकूल हों । ऐसे कार्य, जो सुख एवं हित के देने वाले हों, विरले ही मिलेंगे । श्री गौड़पाद यहाँ प्रमाणित करते हैं कि 'अस्पर्श-योग' वह मार्ग है जो सबको सुख देने के साथ उनका हित चाहता है। प्रात्मा को अनुभव करने के कई अन्य मार्ग हैं जिन पर चलने से मनुष्य को तो सुख मिलताहै किन्तु दूसरों का हित नहीं होता। For Private and Personal Use Only
SR No.020471
Book TitleMandukya Karika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChinmayanand Swami
PublisherSheelapuri
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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