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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २३३ ) निस्संदेह श्री गौड़पार वेदान्त-दर्शन की सर्व-प्रथम सुसंस्कृत व्याख्या करने वाले हैं। उनसे पहले लिखे गये 'ब्रह्म-सूत्र' हैं जो इस पदवी को नहीं पा सकते क्योंकि वह सुव्यवस्थित दर्शनशास्त्र होने की अपेक्षा एक आध्यात्मिक (theological) सार ही है । इस प्रसंग में यह कहना न्याय-संगत होगा कि श्री गौड़पाद दर्शन-शास्त्र की व्याख्या में श्री शंकराचार्य के परम्परागत अग्रज थे। नाराणयपप्रभवं वासिष्ठं शक्ति च तत्पुत्र पराशरं च।। व्यासं शुक्र गौड़पर महातं गोविन्द्रयोगीन्द्रमथास्य शिष्यम् । श्री शंकराचार्यमथास्य पद्मपादं च हस्तामलकं च शिष्यम् । तं त्रोटकं बातिककामन्यानस्मद्गुरून्सन्ततमानतोऽस्मि ॥ ___ इस सुप्रसिद्ध मंत्र में श्री शंकराचार्य तथा उनके शिष्यों से सम्बन्धित प्राचार्यों की तालिका दी गयी है। इससे हमें पता चलता है कि यह सूची भगवान विष्णु से प्रारम्भ होकर त्रोटका. चायं तक पाती है। यह विशिष्ट ज्ञान भगवान विष्णु से वसिष्ठ, शक्ति, उसके आत्मज पराशर, व्यास, शुक्र, गौड़पाद, गोविन्दपाद, श्री शंकराचार्य, पद्मपद, हस्तामलक तक होता हुआ त्रोटकाचार्य तक अवतीर्ण हुमा । इस तालिका से हमें यह पता चलता है कि श्री शंकराचार्य के गुरु गोविन्द पाद श्री गौड़पाद के प्रमुख शिष्य थे। ज्ञानेनाऽकाशकल्पेन धर्मान्यो गगनोपमान्।। ज्ञायाभिन्नेन संबुद्धस्तं वन्दे द्विपदां वरम् ॥१॥ मैं उन श्रेष्ठ पुरुषों को नमस्कार करता हूँ जिन्होंने ज्ञान के द्वारा, जो आकाश के समान है और ज्ञेय से भिन्न नहीं है, विविध व्यक्तियों की प्रकृति का अनुभव किया जो स्वयं आकाश के समान है। श्री गौड़पार की 'कारिका' के अन्तिम अध्याय को इस प्रार्थना-मन्त्र से For Private and Personal Use Only
SR No.020471
Book TitleMandukya Karika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChinmayanand Swami
PublisherSheelapuri
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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