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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २१७ ) वह समुद्र के जल को सुखा कर अपने अण्डे प्राप्त करेगा। इस पर उसने कुशा का एक तिनका अपनी चोंच में लिया और समुद्र का पानी एक-एक बूंद द्वारा बाहिर फैंकना प्रारम्भ कर दिया । आकाश में उड़ रहे 'गरुड़' ने दृढ़ संकल्प वाले उस पक्षी के इस परिश्रम की सराहना करते हुए उसे महायता देने का निश्चय कर लिया ! 'गरुड़' के क्रोध से भयभीत हो कर समुद्र ने उस पक्षी के अण्डे लौटा दिये। द्वैतबादी बहुधा इस कथा का हवाला दे कर यह सिद्ध करने का यत्न करते हैं कि प्रात्म-परिपूर्णता की प्राप्ति चाहे कितनी कठिन हो इसकी अनुभूति संभव हो जायेगी यदि हम उपरोक्त पक्षी की तरह दृढ़ता-पूर्वक अपनी धारणा को कार्यान्वित करने में लगे रहें। जिस तरह पक्षी की सहायता 'गरुड़' ने की वैसे ही हम पर 'ईश्वर-कृपा' बनी रहेगी और हम अपने ध्येय की प्राप्ति कर लेंगे । किन्तु यहाँ इस कथा का किसी और दृष्टि से उपयोग किया गया है । 'पञ्चदशी' में श्री विद्यारण्य तथा 'भागवत्' की टोका में श्री मधुसूदन सरस्वती ने इस कथा का उल्लेख किया है । ___ गत मंत्र में हम उन उपायों का वर्णन कर चुके हैं जिनका प्रात्मानुभूति मे प्रयत्नशील 'योगी' तथा 'ज्ञानी' प्रयोग किया करते हैं । योगी तो अपने विचारों को उच्च करने अर्थात् इन्हें मिटाने का प्रयास करते रहते है । वे मनन एवं अभ्यास द्वारा अपने मन को विचारों से रिक्त करने में लगे रहते हैं जिससे उनका मन विचार-रहित हो जाए । 'कारिका' में श्री गौड़पाद का उद्देश्य हमें यह बताना है कि इस स्थिति को प्राप्त करना असंभवप्राय है और यह प्रयत्न इतना ही कठिन है जितना कुशा के एक तिनके द्वारा समुद्र को सुखाना। तो भी हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि यहाँ ऋषि इस दिशा में किये गये प्रयास की विफलता पर बल नहीं देते । इस उपाय द्वारा हम निश्चयपूर्वक अपने मन को रिक्त कर सकते है किन्तु यह कार्य अति दुष्कर है क्योंकि एक साधारण साधक उस समय तक सफल नहीं हो सकता जब तक For Private and Personal Use Only
SR No.020471
Book TitleMandukya Karika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChinmayanand Swami
PublisherSheelapuri
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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