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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २१० ) यहाँ प्राचार्य ने कहा है कि 'प्रात्मा' इतना सूक्ष्म है कि यह बुद्धि में किसी प्रकार अशान्ति नहीं ला सकता। बुद्धि का कार्य-क्षेत्र विचार है और हमारे मस्तिष्क में किसी विचार के उठने से हलचल होने लगती है । जब हमारी वदि पूर्णतः स्थिर होगी तब विशद्ध चेतना स्वतः जाज्वल्यमान होने लगेगी । जब तक हमारी बद्धि में विचार-तरंगें उठती रहती है तब तक परम-आन इन्हें पालोकित करता रहता है जिससे हम केवल बुद्धि-गत विचारों को जान सकते हैं। इस मंत्र में 'चेतना' द्वारा प्रकाशमान वस्तनों का किसी प्रकार हवाला दिये बिना इस (विशद्ध चेतना) की परिभाषा करने का प्रयत्न किया गया है। इसलिए यहाँ कहा गया है कि परमात्म-तत्त्व तक बुद्धि का पहुँच पाना असंभव है । जब हम इस सनातन-तत्त्व को इन्द्रिय, मन और बुद्धि (जिनके द्वारा मर्त्य किसी पदार्थ का ज्ञान प्राप्त करते रहते हैं) से भी परे हैं तो इमें घोर निराशा का सामना करना होता है क्योकि यहाँ पहुँच कर हम प्रात्म-दर्शन कभी न कर सकेंगे, यहां 'सकृत-ज्योति' का प्रयोग इसलिए किया गया है कि ऋषि हमारे मन पर यह छाप बिठाना चाहते हैं कि चेतमा' को प्रकाशमान करने के लिए किसी अन्य ज्योति की आवश्यकता नहीं । क्या सूर्य को देखने के लिए हमें कोई और रोशनी प्रावश्यक है ? हमें केवल अपने और सूर्य के बीच आने वाली रुकावट को दूर करना है । इस तरह हमारे मानसिक एवं बौद्धिक क्षेत्र के विविध प्रकम्पन शान्त होने ही कत्तिमान आत्म-रूप स्वयमेव व्यक्त हो जाता है । परम-चेतना की अवस्था नाम-रूप में सर्वत: एक-समान है जिससे यह अद्वैत, शाश्वत् तथा असीम तत्त्व परिवर्तनशील नहीं हो सकता और जब इसमें कई विचार नहीं पाता तो इसे किस से भय हो सकता है ? __ जब तक गुरु अपने शिष्यों के लिए उस साधन की व्यवस्था नहीं करते जिसके द्वारा वे अपने ध्येय (प्रात्मा) को अनुभव करने में समर्थ हो तब तक आर्य-जाति को अत्यन्त व्यावहारिक संस्कृति में वास्तवि-तत्व की निदिचन अथवा नकरात्मक भाषा द्वारा परिभाषा करना एक बिफल प्रयास होगा । For Private and Personal Use Only
SR No.020471
Book TitleMandukya Karika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChinmayanand Swami
PublisherSheelapuri
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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