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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १५२ ) गया था। दर्शन-शास्त्र में यह शब्द कितना सुन्दर एवं उपयुक्त है-इस बात का भी हमें पता चल चुका है । इस मंत्र में श्री गौड़पाद ने 'आत्मा' के लिए इसी शब्द का प्रयोग नहीं किया बल्कि इसे समझाने के जिए 'अयम्' शब्द लिख कर निज बुद्धि-चातुर्य का प्रमाण दिया है। हम पहले बता चुके हैं कि 'प्रात्मा' को 'अयम्' किस प्रकार कहा गया है। यह शब्द यहाँ विशेष महत्व रखता है । 'कर्ता' होने के नाते 'आत्मा' हमारे निकटतम है और इससे आगे कोई अन्य वस्तु नहीं है जिस से इसकी दूरी को बताया जा सके। यहाँ हमें इस बात को स्मरण रखना चाहिए कि 'इदम' शब्द का उपयोग स्थल संसार के लिए किया गया है, जब कि आत्म-क्षेत्र का सूचक शब्द 'अयम्' है। ___इस अन्तर्तम केन्द्र (आत्मा) को जानने के लिए हमें तन, मन और बुद्धि पर पूर्ण विजय पानी होगी और इस ध्येय की प्राप्ति प्रत्येक युग के सर्व-श्रेष्ठ वीर पुरुष ही कर पाते हैं। माऊँट एवरेस्ट के शिखर पर पहुँचने के लिए जितना साहस, परिश्रम और प्रयत्न आवश्यक है उससे कहीं अधिक निर्भीकता इस दिशा में होनी चाहिए । इस कठोर परिश्रम के सामने तीन-लोक का राजा बनने से सम्बन्धित सभी प्रयत्न फीके पड़ जाते हैं - यह हमारे शास्त्रों का निश्चित मत है । इस परिस्थिति में इस शंका का, विशेषतः नास्तिकों के मन में, उठना स्वाभाविक है कि बलवान मन एवं बुद्धि पर विजय प्राप्त करने से हमें क्या लाभ होगा । इसका समाधान उन विशेषताओं द्वारा किया गया है, जिन से 'आत्मा' के लक्षण प्रकट किये गये हैं । ____ 'आत्मा' को 'प्रपञ्चोपशम' अर्थात् अनेक प्रकार के मिथ्यात्व से रहित कहा गया है । उपनिषदों द्वारा जिस ध्येय की ओर संकेत किया गया है उसकी सीमा में हमारे अश्रु तथा विलाप का प्रवेश होना असम्भव है। आत्म-स्वरूप की अनुभूति हो जाने पर मृत्यु एवं परिमितता के हमारे सभी बन्धन टूट जायेंगे जिनके कारण हम जीवन भर यातनाएँ सहन करते आये हैं । तब हम पूर्णावस्था के स्वतन्त्र क्षेत्र में पदार्पण करते हैं। आत्म-सता अद्वैत है क्योंकि यह ‘जगत' की अनेकता से अछता है। इसके समान और कोई नहीं। For Private and Personal Use Only
SR No.020471
Book TitleMandukya Karika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChinmayanand Swami
PublisherSheelapuri
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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