SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 127
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जागने वाला एक व्यक्ति स्वप्नावस्था में विचित्र मिथ्या पदार्थ देख सकता है क्योंकि स्वप्न देखते समय चेतना-शक्ति की विचित्र अवस्था होती है और इसका उस (स्वप्न-द्रष्टा) पर विशेष प्रभाव पड़ता है । इस तरह जीवात्मा स्थूल शरीर से अपना सम्बन्ध जोड़ कर जाग्रतावस्था को अनुभव करता है और स्वप्न-जगत में प्रवेश करके स्वप्न-द्रष्टा का नाटक खेलता तथा विचित्र दृश्यों को देखता है । इस भाव को एक बड़े सुन्दर उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया गया है । एक व्यक्ति यात्रा पर जाने के बाद विदेश में प्रवेश करता है जहाँ उसे विचित्र प्रदेश, निवासियों तथा दृश्यों का अनुभव होता है । ऐसे ही जीवात्मा 'जाग्रत' 'स्वप्न' और 'सुषुप्त' अवस्था के विविध क्षेत्रों में प्रवेश कर के भिन्न-भिन्न अनुभव प्राप्त करता है । इस परिस्थिति में वेदान्त के इस सिद्धान्त को निराधार कहना उचित नहीं है कि जाग्रतावस्था का संसार उतना यथार्थ है जितना स्वप्नावस्था का जगत । स्वप्नवृत्तावपि त्वन्तश्चेतसा कल्पितं त्वसत् । बहिश्चेतोगृहीतं सदृश्टं वैतथ्यमेतयोः ॥६॥ जाग्रवृत्तावपि त्वन्तश्चेतसा कल्पितं त्वसत् । बहिश्चेतो गृहीतं सद्युक्तं वैतथ्यमेतयोः ॥१०॥ स्वप्नावस्था में भी स्वप्न-द्रष्टा अपने मन में जो कल्पना करता है वह मिथ्या होती है और स्वप्न में उसे अपने बाहिर जो कुछ दिखायी देता है वह उसे वास्तविक प्रतीत होता है; किन्तु वास्तव में ये दोनों मिथ्या हैं क्योंकि इनका सम्बन्ध स्वप्न से है। ऐसे ही जाग्रतावस्था में मन में जो कल्पना उठती है वह मिथ्या है और मन के बाहिर जो कुछ दिखायी देता है वह वास्तविक मालम देता है; परन्तु ये दोनों उसी प्रकार मिथ्या होने चाहिएँ । For Private and Personal Use Only
SR No.020471
Book TitleMandukya Karika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChinmayanand Swami
PublisherSheelapuri
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy