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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ने कहा है कि ये दोनों पहले पाते अथवा व्यापकत्व रखते हैं; किन्तु इस मन्त्र में यह बताया गया है कि 'विश्व' तथा मात्रा 'अ' इस कारण समान हैं कि ये दोनों 'पहले आते तथा सर्व-व्यापक' हैं। उपनिषद् तथा श्री गौड़पाद की व्याख्या में इस भेद के कारण कई आलोचकों की यह धारणा होगयी है कि पहले 'कारिका' लिखी गयी और बाद में उपनिषद् के गद्य-मंत्र । यह बात ठीक नहीं और कम से कम इस प्रकार का जघन्य परिणाम निकाल लेना तो हमारे पवित्र देश की परम्परागत आस्था के सर्वथा विरुद्ध है । यहाँ उपनिषदों द्वारा अथवा का प्रयोग तथा के समान ही बल रखता है। टीकाकार का यह काम है कि वह पाठकों के सामने उपनिषदों की उक्तियों, इनके रहस्य तथा श्रेष्ठ सुझावों का अर्थ पूरी तरह रखे । साधारणतः उपनिषदों का ध्यानपूर्वक पाठ करने वाला विद्यार्थी उपनिषद् में अथवा के प्रयोग से यह समझ लेगा कि यहाँ यह शब्द 'विकल्प' (alternative) के भाव को स्पष्ट करने के लिए लिखा गया है न कि समुच्चयबोधक (Conjunction) के रूप में । इस प्रकार एक यथार्थ टीकाकार होने के नाते श्री गौड़पाद ने प्रस्तुत मंत्र में इस रहस्य को समझाने के लिए एक ऐसे शब्द का प्रयोग किया है जो प्रत्यक्षतः उपनिषद् के शब्द से भिन्न दिखायी देता है । इसलिए यह कहना, कि उपनिषद् से पहले कारिका लिखी गयी, एक असंगत बात की पुष्टि करना है। फिर भी कुछ आलोचकों ने घोड़े के आगे गाड़ी रख कर उल्टी गंगा बहाने का विफल प्रयास किया है। तैजसस्योत्वविज्ञान उत्कर्षोदृश्यते स्फुटम् । मात्रासंप्रतिपत्तौ स्यादुभयत्वं तथाविधम् ॥२०॥ यह बात व्यक्त है कि 'तेजस' तथा ॐ की 'उ' मात्रा में समानता है । ये दोनों उच्च कोटि के हैं और साथ ही इनकी स्थिति मध्यवर्ती है । For Private and Personal Use Only
SR No.020471
Book TitleMandukya Karika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChinmayanand Swami
PublisherSheelapuri
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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