SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 92
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir राज्याभिषेक। - इसका भावार्थ यह हुआ कि मोरछासे तिलक न मिलने के कारण छत्रसाल वस्तुतः राजा न थे, व्यर्थ अपनेको राजा कहते फिरते थे। छत्रसाल स्वयं कवि थे; उन्होंने इस पदके उत्तरमें एक सवैया बनाकर लिख भेजासुदामा तन हेरे तब रङ्कहूँते राव कीन्हों, बिदुर तन हेरे तब राजा कियो चेरेते। कूबरी तन हेरे तब सुन्दर स्वरूप दीन्हों, द्रौपदी तन हेरे तब चीर बढ्यौ टेरेते ॥ कहत छत्रसाल प्रह्लादकी प्रतिक्षा राखी, हिरनाकुस मारो नेक नजरके फेरेते । एरे गुरुनानी अभिमानी भए कहा होत, नामी नर होत गरुड़गामीके टेरेते ॥ जैसा कि इस सवैयासे स्पष्ट प्रतीत होता है, छत्रसालने अपनी बड़ाईका कारण भगवानको बताया। इसका प्रत्युत्तर ओरछा-नरेश कुछ भी न दे सकते थे। कहते हैं कि उसके पश्चात् उन्होंने इनको सवाई राजा छत्रसालके नामसे पत्र लिखा। इनके अभिषेकके सम्बन्ध विशेष कोई ब्यौरा नहीं मिलता। इसलिये कुछ विस्तारके साथ इस विषयमें नहीं लिखा जा सकता। परन्तु ऐसा विश्वास होता है कि यह उत्सव बड़ी धूमधाम और समारोहके साथ मनाया गया होगा और सम्भवतः उसी ढङ्गका हुआ होगा जैसा कि इनके आदर्शमित्र शिवाजीका हुआ था। - For Private And Personal
SR No.020463
Book TitleMaharaj Chatrasal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1917
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy