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प्रस्तावना |
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इस समय, जबकि देशमें ऐतिहासिक विषयों की अभिरुचि बढ़ती जाती है, महाराज छत्रसालकी जीवनी लिखनेवालेको कोई लम्बी भूमिका लिखनेकी आवश्यकता नहीं है ।
महापुरुषों के जीवनचरित्र मनुष्यमात्रके लिये आदर्श होते हैं । साधारण मनुष्य बड़े कामको देखकर घबरा उठता है । साधनों की न्यूनता उसके उत्साहको ठण्डा कर देती है । परन्तु 'क्रियासिद्धिः सत्वे भवति महतां नोपकरणे,' यह श्रमूल्य शिक्षा हमको महात्माओंके जीवनसे ही मिलती है। इस पुस्तकके नायक सर्वथा उस पूज्य श्रेणीमें रखने योग्य हैं जिसमें हम छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप, महाराणा राजसिंह, गुरु गोविन्दसिंह आदिको रखते हैं । भारतके, और विशेषतः हिन्दू जातिके, अग्रगण्य पुरुषोंमें इनका स्थान श्रति श्रेष्ठ है । इनकी कीर्तिके चिह्न और स्मारक समस्त बुन्देलखण्डमें फैले हुए हैं। परन्तु कई कारणोंसे, जिनमें से कुछका उल्लेख इस पुस्तक के अन्तिम अध्यायमें किया गया है, अभीतक, सर्वसाधारमें इनका नाम उतना प्रसिद्ध नहीं है जितना कि उसे होना चाहिये, और लोग इनके जीवनसे समुचित लाभ उठानेसे वञ्चित रह जाते हैं। ऐसी अवस्था में हिन्दी-प्रेमियों के सामने इस पुस्तकको उपस्थित करना मेरे लिये एक अनिवार्य कर्तव्य था ।
महाराज छत्रसाल के जीवन के विषय में बहुतसी बातें मुझे ज्ञात न हो सकीं; कितनी ही बातें मुझे जनश्रुतियोंके आधारपर लिखनी पड़ी हैं । आशा है कि भविष्य में कोई और
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