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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ६४ महाराज छत्रसाल। - - - क्रमणने उन्हें और भी घबरा दिया । इतनेहीमें अचानक मशालचीके हाथसे मशाल छूट कर मेगज़ीनमें गिर पड़ी। लोगोंका ऐसा विश्वास है कि स्वयं छत्रसाल और बलदिवान मुसल्मानोंके वेशमें वहाँ उपस्थित थे और उन्होंने मशालचीको धक्का देकर मशाल गिरवा दी थी। जो कुछ हो, मशालके गिरते ही मेगज़ीनमें आग लगी। एक भयङ्कर शब्दके साथ सब गोला बारूद फट पड़ा और सैकड़ों रूमियोंके प्राण गये । ऐसी अवस्थामें उनका सँभलना असम्भव ही था। अधिकांश मारे गये और जो बचे रह गये वे भाग निकले। इसके पश्चात् ही जिगनीके जागीरदारकी कन्या भगवत कुँअरीसे इनका विवाह हुअा। ये सब समाचार औरंगजेबके चित्तको अत्यन्त खिन्न करनेवाले थे । मुगल साम्राज्यकी परिस्थिति उस समय अच्छी न थी। जिस शासनको अकबरके सुप्रबंधने दृढ़ कर दिया था और जिसकी पुष्टि जहाँगीर और शाह जहाँकेविषयप्रेमी काल में भी विचलित न होने पायी थी उसकी रग रग ढीली हो रही थी। मुसलमान प्रायः औरंगजेबके भक्त थे क्योंकि वह मुस्लिम धर्मका अनन्य सेवक था। परन्तु बहुतसे बड़े बड़े मुसल्मान सरदार भी उसकी अविश्वास-मूलक नीतिसे अप्रसन्न थे। जिस समय वङ्गविजेता शाइस्ताखाँकी मृत्युका समाचार दिल्ली पहुंचा तब सम्राट्ने उसके पुत्रसे कहा था, "तुम अपने पिताकी मृत्युका शोक करते हो परन्तु मैं अपने सबसे भयप्रद मित्रकी मृत्युका शोक कर रहा हूँ।" स्वयं उसका पुत्र शाहज़ादा अकबर उस समय राजद्रोही हो गया था और युद्धका प्रबन्ध कर रहा था। हिन्दू तो सबही शत्रु होरहे थे । सत्यनामी साधुओका विद्रोह कठिनाईसे शान्त किया गया था कि सिक्खोसे झगड़ा प्रारम्भ हो गया। For Private And Personal
SR No.020463
Book TitleMaharaj Chatrasal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1917
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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