SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir महाराज छत्रसाल। मुगल सेनाका समाचार बराबर मिलता था क्योंकि प्रजावर्ग: को प्रायः इनसे सहानुभूति थी और इनके पास जासूस भी बहुत ही कार्यकुशल थे। कहते हैं कि इनका एक हरकारा राममन दिनभरमें चालीस कोस चल सकता था। ज्योंही छत्रसालको मुगलोंकी चढ़ाईका समाचार मिला, उन्होंने मऊसे कूच कर दिया। इसका कारण यह था कि तोपोंके अभावके कारण ये खुले मैदानमें शाही सेनाका सामना करने में असमर्थ थे। इनको एक सुरक्षित स्थानकी आवश्यकता थी। थोड़ी ही दूरपर गढ़ा नामक किला था जो मुगलोंके अधिकारमें था। उसमें थोड़ेसे शाही सिपाही थे। उनको शीघ्र दबाकर छत्रसालने किला अपने वशमें कर लिया। किलेके चले जानेसे रनदूलाको और भी क्रोध हुआ। उसकी सेना गढ़ाकी ओर बढ़ी। साहगढ़की नदीके पास जो रास्ते में पड़ती थी छत्रसाल पहिलेहीसे छिपे हुए थे। इनके आधे सिपाही तो इनके साथ थे और आधे बलदिवानके साथ गढ़के भीतर थे। छत्रसालके अचानक धावा मारनेसे मुगल सेना घबरा गयी । बहुतसे सिपाही बिना लड़े ही भाग खड़े हुए और जबतक शेष सँभलसके, उनमेंसे बहुत मारे गये । थोड़ी देर के पीछे, जब मुगल सेना सँभल गयी और लड़ने के लिये प्रस्तुत हुई, छत्रसाल जंगलों के रास्ते निकल गये । यद्यपि सब मिलाकर मुगलोंकी कुछ बहुत क्षति न हुई तथापि उनके हृदयों में एक प्रकारका डर अवश्य बैठ गया और छत्रसालके सिपाहियोंका उसी प्रकार साहस और भी बढ़ गया। __यहाँसे चलकर गढ़ेतक सेनाको किसी प्रकारकी रोकटोक न हुई। उन्होंने यह समझा होगा कि छत्रसाल भी गढ़के For Private And Personal
SR No.020463
Book TitleMaharaj Chatrasal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1917
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy