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महाराज छत्रसाल।
मुगल सेनाका समाचार बराबर मिलता था क्योंकि प्रजावर्ग: को प्रायः इनसे सहानुभूति थी और इनके पास जासूस भी बहुत ही कार्यकुशल थे। कहते हैं कि इनका एक हरकारा राममन दिनभरमें चालीस कोस चल सकता था।
ज्योंही छत्रसालको मुगलोंकी चढ़ाईका समाचार मिला, उन्होंने मऊसे कूच कर दिया। इसका कारण यह था कि तोपोंके अभावके कारण ये खुले मैदानमें शाही सेनाका सामना करने में असमर्थ थे। इनको एक सुरक्षित स्थानकी
आवश्यकता थी। थोड़ी ही दूरपर गढ़ा नामक किला था जो मुगलोंके अधिकारमें था। उसमें थोड़ेसे शाही सिपाही थे। उनको शीघ्र दबाकर छत्रसालने किला अपने वशमें कर लिया।
किलेके चले जानेसे रनदूलाको और भी क्रोध हुआ। उसकी सेना गढ़ाकी ओर बढ़ी। साहगढ़की नदीके पास जो रास्ते में पड़ती थी छत्रसाल पहिलेहीसे छिपे हुए थे। इनके आधे सिपाही तो इनके साथ थे और आधे बलदिवानके साथ गढ़के भीतर थे। छत्रसालके अचानक धावा मारनेसे मुगल सेना घबरा गयी । बहुतसे सिपाही बिना लड़े ही भाग खड़े हुए और जबतक शेष सँभलसके, उनमेंसे बहुत मारे गये । थोड़ी देर के पीछे, जब मुगल सेना सँभल गयी और लड़ने के लिये प्रस्तुत हुई, छत्रसाल जंगलों के रास्ते निकल गये । यद्यपि सब मिलाकर मुगलोंकी कुछ बहुत क्षति न हुई तथापि उनके हृदयों में एक प्रकारका डर अवश्य बैठ गया और छत्रसालके सिपाहियोंका उसी प्रकार साहस और भी बढ़ गया। __यहाँसे चलकर गढ़ेतक सेनाको किसी प्रकारकी रोकटोक न हुई। उन्होंने यह समझा होगा कि छत्रसाल भी गढ़के
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