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प्रारम्भिक कार्यवाही।
_प्रश्न अनुचित न था। बुद्धिमान मनुथका काम है कि प्रत्येक कार्यको आरम्भ करने के पहिले सब बातोको विचार ते और तब समझ बूझकर काम करे। कार्यका प्रारम्भ करना तो सुगम है, पर उसका निबाहना कठिन है। "बिना बिचारे जो करै, सो पाछे पछिताय । ” जहाँ एक दो मनुष्योंका काम हो वहाँ भी विचार करना चाहिये । परन्तु जहाँ सहनों मनुष्योका काम हो वहाँ तो फूंक फूंक कर पाँव रखना अत्यन्त ही आवश्यक है। सबसे भारी बोझ नेताके सिरपर पड़ता है। यदि सफलता प्राप्त हुई तो ठीक ही है, नहीं तो सारा दोष उस्सीके सिर मढा जाता है। जितने लोग उसके अनुयायी होते हैं उन सबके समस्त दुःखोंके लिये वही उत्तरदायी ठहराया जाता है । संसारमै अपयश और परलोकमें पापका भागी होता है। इसीलिये कितने लोग "न गणस्याप्रतो गच्छेत्" नीतिका अवलम्बन करके नेता बननेसे घबराते हैं और बड़े बड़े काम कितने दिनोंतक पक धीर नेताके अभावसे रुके रहते हैं। ___परन्तु छत्रसाल ऐसे भीरु व्यक्ति न थे। उनको ईश्वर में पूर्ण श्रद्धा थी और अपनी प्रतिज्ञाकी धर्मानुकूलतामें अचल विश्वास था। उनको अपने विजयी हानेमें तिलभर भी संदेह न था। इसलिये उन्होंने बल दिवानको एक असाधारण उत्तर दिया, जो सामान्य मनुष्यों के साहस के बाहर है। उन्होंने यह प्रस्ताव किया कि दो पत्र लिखे जायें; ए कार 'स्वाधीनता' और दूसरेपर 'पराधीनता' लिखी जाय और श्रीरामचन्द्रजीके मंदिर में ये पत्र किसी अपढ़ पुरुषके सामने रख दिये जायँ, वह जो पत्र पहिले उठा ले उसीके अनुसार काम किया जाय । ऐसा ही किया गया । एक बालकसे पत्र उठवाया गया,
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