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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir शिवाजी से भेंट | के अनन्य भक्त थे। हिन्दूजाति, हिन्दू धर्म, हिन्दू सभ्यताके साथ उनको अनन्य प्रेम था। समस्त भारतवर्ष में हिन्दुनकी विजयपताकाको पूज्य कराना, हिन्दुओंकी श्रखण्ड कीर्त्तिको स्थापित करना, हिन्दुओं के अटल साम्राज्यको हृढ़ करना ही उनके जीवनका उद्देश्य था । फिर अपनेही से विचारवाले पुरुषको पाकर वे क्यों प्रसन्न न होते । जिस पुरुष के पूर्वजोंने अपना सर्वस्व स्वदेश या स्वधर्मकी मान रक्षा के लिये अर्पण कर दिया है वह पुरुष स्वयं श्रसाधारण काम कर सकता है यदि उसका चित्त भी उसी ओर खिंच जाय। पूर्वजों की कीर्त्ति ही उसके उत्साहको पद पद पर बढ़ाती है और उनके दुःखोंकी कहानी ही उसके हृदय और बाहुको बल प्रदान करती है। For Private And Personal ४१ इसीसे शिवाजीको पूर्ण आशा थी कि छत्रसाल के द्वारा देशका अतुलित कल्याण होगा। उन्होंने उनके प्रणकी प्रशंसा की और उनकी प्रतिज्ञाके साथ पूर्ण सहानुभूति दिखलायी । छत्रसाल थोड़े दिन मुगलां के साथ रह चुके थे और इनकी उस जातिके स्वभावका कुछ ज्ञान होगया था। परन्तु शिवाजीका अनुभव इनसे बढ़ा हुआ था। उनको मुगल पठान प्रभृति सब ही यवनजातियाँसे किसी किसी न किसी समय कुछ न कुछ काम पड़ चुका था । वे मुसलमानोंके मित्र भी रह चुके थे और शत्रु भी । इसलिये वे छत्रसालको इस बात की बहुत ही उपयुक्त शिक्षा दे सकते थे कि इन विधर्मियोंके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिये । उन्होंने छत्रसालके हृदयको जो आप ही उत्साह से भर रहा था और भी उत्तेजित कर दिया ।
SR No.020463
Book TitleMaharaj Chatrasal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1917
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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