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शिवाजी से भेंट |
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समारोह ! यह शिवाजीका ही काम था कि उन्होंने दोनोंके ही दाँत खट्टे कर रक्खे थे और एक दुर्जेय हिन्दू राज्यकी स्थापना कर दी थी। लूटमार करते करते अब वे इस योग्य हो गये थे कि मुग़लोंके प्रान्तोंसे चौथ ( वार्षिक आयका चतुर्थांश) लेते थे। औरंगजेबका सारा बल इनकी गति रोकने में असमर्थ रहा और प्रति दिन महाराष्ट्रोंका ऐश्वर्य्यं बढ़ता ही गया ।
दूर दूरसे उत्साही युवक आकर शिवाजीके यहाँ नौकरी करते थे । उस समय उनके सिवाय और कोई ऐसा राजा न था जो देशप्रेमी, यवनद्रोही हिन्दुओंको आश्रय दे सके । उनकी सेवामें श्रानेसे दो लाभ थे। एक तो मुसलमानों से लड़नेका अवसर मिलता था और दूसरे धन और कीर्त्तिकी प्राप्ति दाती थी ।
इन्हीं बातोंको सोचकर अंगदराय और छत्रसाल शिवा जीके यहाँ जानेपर प्रस्तुत हुए थे । उनको श्राशा थी कि शिवाजी से अपने उद्देश्य की सिद्धिमें सहायता मिलेगी । या तो शिवाजी स्वयं बुन्देलखण्ड की ओर प्रयाण करके इस प्रान्तका उद्धार करेंगे या कमसे कम उनके साथ रहनेसे इस कार्य्य-सम्पादनके उपयुक्त साधन एकत्र हो जायँगे । यदि यह सब कुछ भी न हुआ तौभी शिवाजी ऐसे हिन्दू राजाकी सेवा करनी मुग़लोंके दासत्वसे कहीं बढ़कर है । कमसे कम स्वधर्म की रक्षा तो हो ही जायगी ।
रास्ते में ये लोग दैलवारेमें ठहर गये। यहाँके प्रमर ठाकुरकी लड़की देवकुमारीसे छत्रसालका विवाह हुआ। फिर अपने सारे कुटुम्बके साथ ये लोग दक्षिणकी ओर चल पड़े ।
परन्तु शिवाजीतक पहुँचना सहज नथा । उस समय कई
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