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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir मुग़लोंकी सेवा। करनेका विचार चित्तमें ठाना था वह न फली । ऐसे अवसरपर क्रोधका श्रावेश होना तो स्वाभाविक ही था पर मनुष्यका मन एक विचित्र पदार्थ है। अपने स्वामीको ठगना इसका एक साधारण गुण है। जबतक मनुष्य अपने आत्मिक बलसे काम लेकर सात्विक वृत्तियोंके सहारे इसको दबाये रखता है तबतक तो यह ठीक काम करता है परन्तु जहाँ एकवार इसको स्वातंत्र्य दिया गया फिर इसका वशमे आना कठिन है। प्राणीको अनेक नाच नचाकर यह उसे स्वधर्मपालनसे बहि त रखने का यत्न करता रहता है। इतनेपर भी छत्रसाल और इनके भाई की आँस्त्र न खुली। युवावस्थामें मनुष्य स्वभावतः अाशापूर्ण होता है। इन लोगोंने एक बार फिर अपने भाग्यकी परीक्षा करनी चाही। इनको विश्वास था कि दूसरी बार फिर युद्धकौशलका परिचय देनेसे हम अवश्य पुरस्कृत होंगे। ___ इन्हीं दिनों इनके पूर्वनेता बहादुरखाँ फिर दक्षिणकी ओर जा रहे थे। दोनों भाई उनके ही साथ हो लिये। इस बार इन्होंने फिर अत्यन्त क्षमताके साथ काम किया और पुरस्कारके अधिकारी होनेका पूर्ण प्रमाण दिया । पर फल वही रहा । पुरस्कारादिके दर्शन न हुए। अब जाकर इनकी बुद्धि ठिकाने हुई। यह बात ये समझने लग गये कि इस दरबारसे हमको कुछ भी लाभ नहीं हो सकता । उस समय मुगलराज्यमें हिन्दुओंके साथ जैसा सलूक किया जाता था वह इनसे छिपा न था। मुग़लवंशके दक्षिणबाहु जयपुर और जोधपुरके राजपूतोतकके साथ जैसा षड्यंत्र औरंगजेब रच रहा था वह भी हिन्दूमात्र को ज्ञात था । अब लोगोंको यह निश्चय हो गया कि For Private And Personal
SR No.020463
Book TitleMaharaj Chatrasal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1917
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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