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मुग़लोकी सेवा।
५. मुगलोंकी सेवा। जैसाकि ऊपर कहा जा चुका है, थोड़ेसे सज्जनोंने छत्र. सालका साथ दिया। अभीतक इन्होंने यह निश्चय नहीं किया था कि अब क्या करना चाहिये। इतने में यह सुनने में पाया कि आमेरके महाराज जयसिंह एक सेनाके साथ देवगढ़पर चढ़ाई करने जा रहे हैं। देवगढ़ जानेका विचार छत्रसालका पहिलेहीसे था; क्योकि इनके बड़े भाई अङ्गद राव यहाँके राजाके यहाँ नौकर थे। जयसिंहके उस ओर जानेका समाचार पाकर इनका विचार और भी पक्का हो गया ओर ये उनसे जा मिले ।
महाराज जयसिंहका उस समय बड़ा नाम था। ये स्वयं बड़े वीर पुरुष थे और बड़े ही कुशल सेनानी थे । मुगल राज्यके प्रबल स्तम्भोंमें इनकी गणना थी। जब शिवाजीके विरुद्ध बड़े बड़े मुसलमान सेनापति हार गये थे तब इनको सफलता हुई थी। योद्धा होने के साथ साथ ये पण्डिन और गुणग्राही थे । काशी आदि स्थानों में इनके बनवाये हुए ज्योतिषके यन्त्रालय अबतक स्थित हैं और जयपुरको इन्होंने ही बलाया था। यह उन राजपूत सरदारों से थे जिन्होंने अपनी सारी शक्ति मुगल राज्यकी वृद्धि में लगायी, परन्तु जिनको अन्तमें कृतघ्न औरङ्गजेबने तर करके राज्यका विरोध करने और उदयपुर के महाराणा राजसिंहका साथ देनेपर बाधित किया।
हिन्दू वीर युवक स्वभावतः इनकी ओर खिचते थे। इसी कारण छत्रसाल भी इनके पास आये । जयसिंहने इनका और इनके पिताका वृत्तान्त सुनकर सहानुभूति प्रकट की
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