________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
महाराज छत्रसाल ।
-
-
-
-
-
इस प्रकार दो शत्रुओंसे घिरकर इन्होंने अपनी माताके परामर्शसे नीतिका आश्रय लिया। अपने परिमित बलसे दोनोंसे लड़ने में हानिके सिवाय और कोई फल नहीं था। इसलिये उन्होने यह उचित समझा कि इस समय इन दोनोमेसे एकसे सन्धि कर ली जाय और इस विचारसे उन्होंने अपराध-क्षमापनके लिये दिल्ली पत्र भेजा। दिल्लीसे सन्धि करनेमें लाभ यह था कि जिस व्यक्तिपर सम्राट्की कृपा हो उसके साथ विरोध करनेका साहस किसीको, विशेषतः महाराज पहाड़सिंहको, नहीं हो सकता था। ___ यह वह समय था जबकि शाहजहाँका शासन-काल समाप्त होनेवाला था और उसके पुत्रोंमें राज्यके लिये घोर संग्राम मचनेवाला था। अभी दिल्ली में बादशाहकी सम्मतिसे दारा शिकोह राज्यका काम सँभाल रहे थे। ये स्वभावसे ही हिन्दुओंके पक्षपाती थे। अतः चम्पत रायका प्रार्थनापत्र जाते ही स्वीकृत हुआ। वे दिल्ली बुलाये गये और वहाँ उनका बड़ा आदर किया गया। दाराने उनको एक सेनाके साथ कुम्हारगढ़की
ओर भेजा। इनको इस युद्ध में विजय प्राप्त हुई और इससे शाही दरबार में इनका सम्मान और भी बढ़ा । उन दिनों कुछ कालके लिये लक्ष्मी अनुकूल थी; दाराने प्रसन्न होकर इनको एक बड़ी जागीर पारितोषिकमें दी। इनके अकारण शत्रु महाराजा पहाड़सिंहको भी ऊपरसे चुप ही रहना पड़ता था यद्यपि वे अपने गुप्त षडयंत्रोंसे पराङ्मुख न थे। थोड़े ही दिनों में राव चम्पतके भाग्यने फिर पलटा खाया ! ओरछावालोंके प्रयत्नसे अथवा दैवदुर्विपाकसे इनपर शाही महलसे चोरी करानेका दोष लगाया गया और इस दोषारोपणकी पुष्टिमें कुछ प्रमाण भी एकत्र हो गये । इससे रुष्ट हो कर बादशाहने जागीर छीन
For Private And Personal