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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir चम्पत राय । १३ परन्तु जब शाहजहाँने बुन्देलखण्डपर आक्रमण करके जैसा कि द्वितीय अध्यायमें लिखा गया है, उसे पद-दलित करना प्रारम्भ किया तो चम्पत रायने अपना ध्यान मुग़लोंकी ओर फेरा। पहिले तो वे मुगलोंको धनी देखकर उनकी सेनाके साथ साथ लगे रहकर लूट मार करते रहे; परन्तु जब महाराजा जुझारसिंहकी मृत्युके उपरान्त उनके कुलवालोंके साथ दुराचार किया जाने लगा और हिन्दु धर्मकी दुर्दशा की जाने लगी तो उनके हृदयमें आग भड़क उठी। एक तो स्ववंशकी दुरवस्था और दूसरे स्वधर्मका तिरस्कार-इन दोनोंने उनमें अपूर्व जातीयताका सञ्चार कर दिया। इन्होंने इस बातकी प्रतिक्षा की कि यथाशक्ति मुग़लोका संहार करके स्वदेशमें फिर से प्रार्यजातिका अखण्ड राज्य स्थापित करूँगा। ये पराक्रमी पुरुष तो थे ही; सारे बुन्देलखण्ड में इनके युद्धकौशल की धाक थी। ज्योहीकि इन्होंने साधारण तुच्छ डकैती छोड़कर देश सेवाका बीड़ा उठाया, बुन्देलखण्ड के सारे देशभक्त जिनके हृदय मुग़ल-संरक्षित देवीसिंहक अनार्य शासनसे तप्त हो रहे थे, इनसे आ मिले । ___ इन लोगोने जुझारसिंहके दुधपीते बच्चे पृथ्विराजको अभिषिक्त करके उसके नामपर लड़ना प्रारम्भ किया। कुछ काल में यह बालक अचानक मुग़लोंके हाथ पड़ गया । परन्तु ये फिर भी हताश न हुए। मुग़लोके नाकों दम कर दिया। यद्यपि इतनी सामर्थ्य इनमें न थी कि देशको मुग़ल-शून्य कर देते, तथापि मुग़लोको रहना कठिन हो गया और अन्त में इनको शान्त करने के लिये शाहजहाँने, जैसा कि ऊपर लिखा जा चुका है, बीसिह देवके लड़के पहाड़सिंहको गद्दीपर बैठाया। For Private And Personal
SR No.020463
Book TitleMaharaj Chatrasal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1917
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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