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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir महाराज छत्रसाल । अभयदान देनेके अनन्तर उनको राज्यका वर दिया । उन्हीं रक्त के बूँदोंके कारण हेमकर्ण के वंशज बुंदेले या बुन्देले कहलाये । हेमकर्णने देवीके निर्देशसे अपना नाम पञ्चमसिंह रक्खा। ये ही इस वंशके मूल पुरुष हैं 1 पञ्चमसिंहके प्रपौत्रका नाम अनङ्गपाल था और अनङ्गपालके पुत्र का नाम सहनपाल । अनङ्गपाल ( या अर्जुनपाल ) उस समय महोनी में रहते थे । उनसे रुष्ट होकर सहनपाल महोनीसे निकल गये और उन्होंने गढ़ कुँडार में खँगार ठाकुरके यहां नौकरी कर ली । यह खँगार उस समय राजपूतों के यहाँ बलात् विवाह करना चाहता था और कई राजपूत युवतियोंका उसने इसी प्रकार खँगारोंके साथ सम्बन्ध कर दिया था। इस बात से राजपूत मात्र उससे असन्तुष्ट थे । उसने सहनपालकी दो भतीजियोंको भी इसी प्रकार खंगारोंको देना चाहा । अवसरवश सहनपालने वाग्दान तो दे दिया, पर अपने दो मित्रोंकी सहायतासे अन्तमें उस खँगारको मार कर आप गढ़ कुँडारके स्वामी हो गये । उनके दोनों मित्रोंमेंसे एक तो पँवार (प्रमर) और दूसरे धंधेरे ( चौहानोंकी एक शाखा ) थे । इन्हीं दोनोंके साथ दोनों उक्त लड़कियोंका विवाह कर दिया गया । उस समय से अन्य राजपूतने बुंदेलों, धँधेरों और पँवारोंके साथ विवाहादि सम्बन्ध त्याग कर दिया । इसका कारण यह बतलाया जाता है कि एक तो बुंदेलोंने अपने खँगार स्वामीको छलसे मारा और दूसरे बँगारोकी वाग्दत्ता स्त्रियों को राजपूतोंकी गृहिणी बनाया । पँवारों और धंधेरोंका दोष यह है कि उन्होंने इन स्त्रियोंको स्वीकार कर लिया । यदि इन तीनोंके जातिच्युत होनेका यही कारण है तो For Private And Personal
SR No.020463
Book TitleMaharaj Chatrasal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1917
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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