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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir संक्षिप्त आलोचना। १२१ - - - होगा उनको शिवाजीकी जीवनीके साथ उसका सादृश्य अवश्य प्रतीत हो गया होगा। दोनोंने ही लूटमारसे अपना कार्य प्रारम्भ किया था, दोनों ही एक समय पराधीन हो कर दिल्ली गये थे, दोनों ही निरादरसे रुष्ट होकर मुग़लोंके घोर शत्रु हो गये थे और अन्त में दोनोंकी ही औरंगजेबसे लड़ कर जीत हुई थी। इतना ही नहीं, दोनों परम धार्मिक थे और दोनोंका ही अभ्युदय गुरुप्रसादसे हुआ था। दो समकालीन व्यक्तियों में इस प्रकारका साम्य एक आश्चर्य-जनक बात है। सम्भवतः इसका सम्बन्ध न केवल रानजनीतिसे, प्रत्युत्मनोविज्ञानसे भी है। अन्तमें एक रोचक प्रश्न उत्पन्न होता है-इस बातका क्या कारण है, कि बुंदेलोका अभ्युदय छत्रसालके जीवनके साथ ही समाप्त हो गया और मरहठोंकी वृद्धिके सदृश और प्रबुद्ध न हुआ ? मेरी समझमें इसके कई कारण थे। पहिला कारण यह था कि बुन्देलखण्ड दिल्लीके बहुत समीप है; महाराष्ट्रकी राजधानी पूना दिल्लीसे इतनी दूर है कि मुग़लोको उससे छेड़छाड़ करनेमें बहुत कष्ट उठाना पड़ता था । परन्तु बुन्देलखण्डके सम्बन्धमें यह बात न थी। इसके अतिरिक्त महाराष्ट्र के पास कोई प्रबल मुसलमान सूबेदार या नव्याब न थापरन्तु बुन्देलखण्डके पास कई बड़े सूबे थे और पञ्जाब और आगरा प्रान्तके नव्वाब भी समीप ही थे। इसी कारण बुन्देलखण्डका बहुतसा बल अपनी रक्षामें ही लग गया ओर बुंदेलोको बाहर फैलनेका अवसर न मिला। उनकी सामर्थ्य एक और कारणसे घट गयी थी। उनमें ऐक्यका अभाव था।ओरछावालोंने प्रारम्भसे ही छत्रसालकोजोजो कष्ट For Private And Personal
SR No.020463
Book TitleMaharaj Chatrasal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1917
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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