SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir महाराज छत्रसाल । इस देशके बहुत प्राचीन इतिहासका ठीक ठीक पता नहीं चलता । ऐसा प्रतीत होता है कि जब आर्य लोग गङ्गा और यमुनाके बीचके अन्तर्वेदमें फैल गये उसके कुछ काल पीछे वे यमुनाको पार करके इस प्रान्तमें भाये होंगे। अभीतक यहाँ प्राचीन आदिम :निवासियों के घंशज पाये जाते हैं, जिनमेसे गोड ओर गूजर प्रधान हैं। गोडोंका किसी समय बहुत ही विस्तृत राज्य था, जिसके चिह्न अबतक मिलते हैं। अनुमानतः इन्हीं आदिम निवासियोंसे लड़ते भिड़ते आर्य लोग यहाँ धीरे धीरे बस गये होंगे। परन्तु इसका कुछ भी ऐतिहासिक प्रमाण नहीं मिलता। इस समयसे कोई १५०० वर्ष पूर्व, यहाँ पड़िहार क्षत्रियोंका राज्य था । इस वंशमें जुझारसिंह नामक एक यशस्वी राजा हुधा है। इसने कुछ ब्राह्मणोंको भूमिदान दिया था। इनके वंशज अभीतक जुर्बेतिया ब्राह्मणके नामसे प्रसिद्ध है। पड़िहारोंके पीछे राज्य चन्द्रवंशी चन्देल क्षत्रियोंके हाथमें आया। इस वंशका राज्य यहाँ बहुत दिनोंतक रहा और देशने भी इनके शासन-काल में बहुत उन्नति की । इन पराक्रमी राजाओने क्रमशः पञ्जाबतक अपना राज्य फैलाया और इस समयतक इनके कीर्तिसूचक अनेक चिह्न पाये जाते हैं। कालिअरका प्रसिद्ध गढ़ इन्हींका बनवाया हुआ है । जयपालका साथ देकर इन्होंने मुसलमानों का भी सामना किया था । इस वंशका इक्कीसवाँ राजा परिमाल हुआ। इसकी विषयपरायणताका यह फल हुया कि धीरे धीरे राष्ट्र में दुर्बलता फैलती गयी और अन्तमें यहाँ दिल्लीके प्रसिद्ध राजा पृथ्विराजका अधिकार हो गया। इस सम्बन्धके कारण अनेक चन्देल वीरोंको स्थानेश्वरके अभागे रणक्षेत्र में अपनी जानी For Private And Personal
SR No.020463
Book TitleMaharaj Chatrasal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1917
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy