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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir SE महाराज छत्रसाल। इस बातका खटका ही जाता रहा । मुगलोंका बल इतना कम हो गया था कि नये राज्यको जीतना दूर रहा, अपने बचे खुचे राज्यकी रक्षा करनी ही उनके लिये कठिन कार्य हो गया था। १७. बहादुरशाहसे भेंट । जैसा कि ऊपर लिखा जाचुका है, औरंगजेबकी मृत्युके पश्चात् मुगल शासन अत्यन्त दुर्बल हो गया था। दिल्लीके अत्यन्त समीपके प्रान्तोको छोड़ कर अन्य स्थानों में उसका आधिपत्य नाममात्रावशिष्ट रह गया था। उस समय बहा. दुर शाह दिल्ली में सम्राट् थे। ये राजविद्रोहियोंसे लड़ते लड़ते थक गये थे; पर उनके आगे एक न बन पायी। अन्तमें उनके मन्त्रियोंको एक युक्ति सूझी । उन्होंने बादशाहसे छत्रसालके पराक्रमकी प्रशंसा की और मुग़ल वंशसे उनके पुराने सम्बन्धका (जब कि उनके पिता और स्वयं वे राजसेवामें थे) कथन किया। यह सब देख भाल कर यह परामर्श किया गया कि किसी प्रकार छत्रसालको अपना सहायक बनाकर उनके द्वारा विद्रोह शान्त किया जाय । बहादुर शाहको भी यह युक्ति अच्छी लगी। इससे दो लाभोंकी सम्भावना थी। एक तो छत्रसाल ऐसा प्रबल मित्र मिलता था और दूसरे विद्रोहकी शान्ति होती थी। निदान छत्रसालको इसी प्राशयका पत्र भेजा गया। सम्राट्ने पुराने झगड़ोंको भूल जाने और भविष्यके लिये सन्धि करनेका प्रस्ताव किया। अन्तमें उनसे दिल्ली आनेके लिये बहुत आग्रह किया गया। For Private And Personal
SR No.020463
Book TitleMaharaj Chatrasal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1917
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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