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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir अस्मद खाँ। - ही देरमें इनका सारा बल स्वभावतः ठण्डा हो गया। साधारण अवस्थामें छत्रसाल इनको थोड़ासा दण्ड देकर क्षमा कर देते पर इस युद्ध में उनके बीर सेनाती रायमन दौत्राको अचानक गोली लग गयी। इससे उनको बड़ा क्रोध पाया और विद्रोहियोंकी सेना नष्टाभ्रष्ट कर दी गयी । इसके पीछे. सोलह सहस्र रुपया लेकर तब उनको छोड़ा । कहा जाता है कि इस लड़ाई में सातसोले अधिक देहाती मारे गये । यद्यपि गँवाँरोसे लड़नेमें और उनको जीतने में कोई बड़ी कीर्ति न थी तौभी छत्रसालको बाध्य होकर ऐसा करना पड़ता था। ये गँवार मुसल्मा. नोकी बातों में आकर अपने सच्चे हितैषियोंसे ही झगड़ा ठान बैठते थे। हिन्दू होकर भी इनकी समझमें यह बात न आती थी कि उनके गोहिंसक विधर्मी और विजातीय शासक उनके उतने हितेच्छु नहीं हो सकते थे जितने कि छत्रसाल ऐसे धर्मवीर पुरुष थे। मुग़ल उनकी केवल इतनी भलाई चाहते थे कि वे राजकीय कर देते रहे और कुलियों की भाँति सेवा करते रहें। पर इस लड़ाईने आँख खोलदी । इसके पीछे फिर छत्रसालके विरुद्ध इस प्रकारका कोई उपद्रव न हुआ और ये स्वतन्त्र होकर अपना सारा बल मुग़लोंके विरुद्ध लगा सकते थे। इन्हीं दिनों धामौनी में अस्मद ख़ाँकी सूबेदारी थी। इसने पहाडीके पास अपनी सेना लेकर इनको रोका। कुछ देर लड़ाईके उपरान्त उसकी सेना बिचल गयी और वह स्वयं पकड़ा गया। पहिले वह चौथ देना स्वीकार न करता था । विवशतः उसके वधका आदेश होनेवाला था कि सैयद अब्दुल्लतीफ़के समझानेसे मान गया और चौथ देनेपर सह For Private And Personal
SR No.020463
Book TitleMaharaj Chatrasal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1917
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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