________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
लिपि-विकास अभाव में भी साहित्य, इतिहास आदि हो सकते हैं और थे, केवल इतना अंतर हो जाता है कि वे अनिश्चित से रहते हैंधमें जंत्र-मंत्र का, साहित्य कविता का और इतिहास लोककथाओं का रूप ग्रहण कर लेता है। हमारे वैदिक मंत्र, रामायण तथा महाभारत की कथाएँ यूनानियों की ट्राय, एडिपस आदि की कहानियाँ तथा विभिन्न देशों की परम्परागत लोककथाएँ इसके उदाहरण स्वरूप हैं। अतः लेखन कला के अभाव में धर्म, साहित्य, इतिहास आदि का होना सम्भव है। द्वितीय यह कि लिपि से आशय केवल वर्ण-लिपि से ही नहीं है। जिस प्रकार लेखन-कला के अभाव में साहित्य का होना सम्भव है, उसी प्रकार वर्णमाला के अभाव में लिपि का होना भी सम्भव है । वर्णमाला के अभाव में मनुष्य रज्जु, रेखा, चित्र आदि द्वारा अपने भावों तथा विचारों को लिपिबद्ध करता था। अतः लिपि के अन्तर्गत वर्ण-लिपि के अतिरिक्त रज्जु-लिपि, रेखालिपि, चित्र लिपि आदि भी आ जाती हैं। इन सब का कालक्रमानुसार विशद वर्णन नीचे किया जायगा।
। १) रज्जु अथवा ग्रन्थि-लिपि-हिन्दी शब्द 'वर्षगाँठ' तथा फारसी - (साल गिरह ) का अर्थ है 'साल की गाँठ' । कुछ ही समय पूर्व और किसी-किसी घर में तो, जहाँ कि स्त्रियाँ अधिक वयोवृद्ध, अपढ़ तथा प्राचीन विचार की हैं,
आजकल भी, बच्चे की जन्म-तिथि के दिन एक वर्ष व्यतीत होने पर सून की डोरी में एक गाँठ लगा दी जाती है जिससे उन्हें स्मरण रहे कि उनका बच्चा कितने वर्ष का है। इसके अतिरिक्त प्रायः किसी बात का स्मरण रखने के लिये आजकल भी गाँठ बाँधी जानी है। ग़ालिब का रुमाल में गाँठे बाँध कर कविता याद रखना तो प्रसिद्ध ही है। स्काउट भी घास आदि में गाँठ लगा कर संकेर बनात है। इन बातों से सिद्ध होता है कि भारत में किसी
For Private And Personal Use Only