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लिपि विकास पू० तक पूर्ण हो चुकी थी। नवीन शैली में शून्य की योजना हो गई थी और दहाई से गिनने की प्रथा भी चल पड़ी थी।
इसी समय भारतवासीय न 'दश गुणोत्तर संख्या क्रम भी निकाला, जिसके अनुसार किसी अङ्क के दाहिनी ओर से बाई हटने पर उसका मूल्य दस गुनाहो जाता है, उदाहरणार्थ १५५११ में पाँचों अङ्क ? के ही हैं, परन्तु दाहिनी ओर से लेने से पहिला इकाई, दूसरा दहाई, तीसरा सैकड़ा, चौथा हजार तथा पांचवाँ दस हजार है अर्थात् पहिले से १ का, दूसरे १ से १० का, तीसरे १ से १०० का, चौथे १ से १००० का और पाँचवें १ से १०००० का बोध होता है ! संसार की गणित, ज्योतिष विज्ञान
आदि की समस्त उन्नति भारतवासियों के इसी अङ्क क्रम के कारण हुई है। अब प्रश्न यह है कि भारतवासियों ने यह अङ्क क्रम कब निकाला और इसका प्रचार अन्य देशों में कब और किस प्रकार हुआ! अराहमिहिर की ‘पंच सिद्धान्तिका' में जो कि ५ वीं शताकी है, नवीन शैली के अत सर्वत्र पाए जाते हैं। योग सूत्र के भाष्य में जो ३०० ई० के निकट का है, व्यास ने 'दशगुणोत्तर अङ्कु क्रम' का उदाहरण स्पष्ट रूप से दिया है। इसके अतिरिक्त बख्शाली, (जि० युसुफजई, पंजाब) में भोजपत्र पर एक हस्त लिखित पुस्तक पाई गई है जिसमें नवीन शैली के अङ्क उपलब्ध हैं। हार्नलीके मत से इसका रचना काल रीअथवा ४थी शता है। वातः यह निश्चित है कि नवीन शैली पाँचवीं शताब्दी में प्रचलित की और इसका आविष्कार इसके कुछ पूर्व सम्भवतः ४थी शता में हो गया था। इसके विदेशों में प्रसरण के विपय में प्रोमा का मत है कि नवीन शैली के अंकों की मृष्टि भारतवर्ष में हुई फिर यहाँ से अरबों ने यह क्रम सीखा और अरबों से उसका प्रवेश यूरोप में हुआ है।
* अोझा, 'शचान लिपिमा ना', पृष्ठ ११७-११८...
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