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hi का संक्षिप्त इतिहास
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चिन्ह को क्रमशः १ से ६ बार लिखने से बनते थे । इसी प्रकार १०० से ६०० तक लिखने के लिए १०० का अक चिन्ह क्रमशः १ से ६ बार लिखा जाता था । अतः मिस्री अ प्रारम्भिक अवस्था में था और भारतीय अ अधिक जटिल था ।
फिनीशियन अङ्क मिस्त्री अङ्कों से ही निकले हैं। इसमें २० का एक नवीन अङ्क चिन्ह बना लिया गया है और ३० से ६० तक लिखने के लिए २० तथा १० के अङ्क चिन्ह आवश्यकता - नुसार लिखे जाते थे । उदाहरणार्थ ६० के लिए २० का अङ्क ४ चार और उसके बाद १० का अङ्क लिखा जाता था ।
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क्रम बिलकुल क्रम से कहीं
ग्रीक अङ्क लिपि में केवल १०००० तक की संख्या थी । रोमन अक्क लिपि में १००० तक संख्या थी । रोमन अक अब भी घड़ियों तथा अन्य स्थानों में प्रचलित हैं । उसमें १, ५, १०, ५०, १०० और १००० के अक चिन्ह हैं, शेष अङ्क तथा संख्यायें इन्हीं से बन जाती हैं ।
उक्त विदेशी अङ्क क्रमों में एक भी ऐसा न था जिससे गणित ज्योतिष तथा विज्ञान की कोई विशेष उन्नति हो सके । यह सब उन्नति भारतीय अङ्क क्रम द्वारा हुई ।
भारतीय अंकों में वैदिक कालीन जिह्वामूलीय तथा उपध्मानीय अक्षरों का होना इस बात का प्रमाण है कि उनकी उत्पत्ति वैदिक काल में हो चुकी थी और उनका निर्माण ब्राह्मणों द्वारा हुआ न कि विदेशियों द्वारा । अरब, ग्रीस, रोम आदि अन्य देशों मैं तो कार तो इसके बहुत बाद में हुआ है । भारतीय अंकों की दो शैलियाँ हैं, प्राचीन तथा नवीन । अशोककालीन अंक चिन्ह प्राचीन शैली के उदाहरण हैं । जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है प्राचीन शैली में १ से १ तक अंक थे और दहाई से गणना करने का नियम न था । यह शैली १५० ई०
श्री नन्दिर
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