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लपि का आविष्कार अमरीका की रैड इंडियन जाति में अँगूर की बेल द्वारा होता था। + (योग),-(घटाना),x (गुणा), भाग, : (चूँकि), :: (इसलिए), =(बराबर),> ( अपेक्षाकृत बड़ा),<( अपेक्षा कृत छोटा ),( समानान्तर)A(त्रिभुज)। (लम्ब) आदि तथा O (चन्द्रमा),O (सूर्य), नं० १४ (पृथ्वी), नं० १५ (वृहस्पति) नं० १६ (मङ्गल), नं० १७ (शुक्र), नं०१८ (शनिश्चर ) आदि भी, जिनको सर्व संसार के गणितज्ञ तथा भूगोलज्ञ अथवा ज्योतिषी एक होने के कारण समझ लेते हैं, सम्भवतः इसी प्रकार के चिह्न हैं। विशप विल्किस के मत से भी, जो कि इनको अत्यन्त प्राचीन और विश्व भाषा ( universal language ) का अवशेष चिह्न मानता है, इसकी पुष्टि होती है। स्काउट अाजकल भी इस प्रकार के शब्द चिह्नों का प्रयोग करते हैं, जैसे नं० १३, १६,->,O,+ आदि क्रमशः जल, डेरा, आओ, घर, भय आदि के द्योतक हैं । यहाँ यह याद रखना चाहिए कि स्काउट चिहों का, जो अभी कुछ समय पूर्व निर्मित हा है. प्राचीन शब्द-प्रकाशक-चित्र लिपि से कोई सम्बन्ध नहीं है।
( ४ ) ध्वनि प्रकाशक चित्र लिपिः-मूर्त पदार्थों का तो वास्तविक सांकेतिक चित्रों द्वारा और अमूर्त पदार्थों का सांकेतिक चिह्नों द्वारा प्रकाशन हो जाता था ओर जटिल भावों के लिए दो तीन भाव-चित्र संयुक्त कर लिए जाते थे, परन्तु व्यक्तिवाचक संज्ञाओं को व्यक्त करने के लिए कोई चिह्न न था। इस आवश्यकता की पूर्ति भाव-चित्रों को ध्वनि-चित्रों में परिणत करके की गई, उदाहरणार्थ मैक्सिको केच तुर्थ राजा 'इत्जकोल' का नाम मैक्सकन 'इत्ज' (चाकू) तथा 'कोल' (सर्प) के भाव-चित्रों द्वारा लिखा गया है। इस प्रकार मूल चित्रों से सांकेतिक भाव-चित्र और भाव चित्रों से ध्वनि-चित्र बने ।
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