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लिपि-विकास
का द्योतक X () दोनों हाथों वा द्योतक और 1V, VI, VII, VIII, IX आदि अंगुलियों के घटने-बढ़ने से बनने वाले हाथ अथवा हाथों के द्योतक सांकेतिक चिह्न थे। कहीं-कहीं तो ये सांकेतिक-चिह्न इतने परिवर्तित हो गए कि इनका अपने मूल-चित्रों से लेश मात्र भी सम्बन्ध नहीं रहा और उनके प्रतीक बन गए, उदाहरणार्थ प्राचीन चीनी लिपि में 'कुत्ता' तथा 'लकड़ी' के भाव-चित्र क्रमशः न०६ तथा ७ थे, परन्तु अधुनिक चीनी लिपि में इनके सांकेतिक चिह्न अथवा प्रतीक क्रमशः नं०८ तथा ६ हैं। जटिल भावों आदि का द्योतन करने के लिए दो तीन भाव-चित्र मिला लिए जाते थे, जैसे प्राचीन चीनी लिपि में साधु का बोध पर्वत पर मनुष्य रहने के भाव-चित्र नं०१० द्वारा होता था और आधुनिक चीनी-लिपि में भी सांकेतिक चिह्न नं० ११ द्वारा होता है। इसी प्रकार विवाहिता स्त्री के लिए स्त्री तथा झाड़ के, प्रेम करने के लिए स्त्री तथा पुत्र के, रक्षा के लिए स्त्री पर हाथ के, अन्धकार के लिए वृक्ष के नीचे सूर्य के, प्रकाश के लिए वृक्ष पर चन्द्र-सूर्य के, सांकेतिक चित्र बनाए जाते थे। क्यूनीफार्म लिपि में बन्दीगृह के लिए घर तथा अन्धकार के, अश्रु के लिए जल तथा आँख के और मिस्त्री में प्यास के लिए जल तथा उसकी ओर दौड़ते हुए पशु-वत्स के सांकेतिक चिह्न बनाए जाते थे। इसी प्रकार रेड इंडियन जाति में समय के लिए वृत्त का, कुटुम्ब के लिए अग्नि का, शान्ति के लिए पाइप का और शीघ्रता के लिए पंख फैलाए हुए पक्षी का प्रयोग होता था। चूँ कि ये सांकेतिक चिह्न शब्दों की भांति प्रयुक्त होते थे, अतः इस लिपि को शब्द-लिपि कह सकते हैं । ये सांकेतिक चिह्न भिन्नभिन्न देशों में भिन्न-भिन्न प्रकार के थे। उदाहरणार्थ सुमेर तथा मिश्र के जल-चिह्न क्रमशः नं० १२ तथा १३ थे। इसी प्रकार चीन में मित्रता का बोध दो मिले हुए हाथों से होता था, परन्तु
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