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लिपि-विकास
तथा । ॥ ॥ ॥ A आदि रेखाओं से हुआ है । मण्डल मतालम्बी मनोवैज्ञानिकों का मत है कि समस्त रेखा-चित्र तथा चिन्ह मण्डल 'O' अर्थात शन्य से निकले हैं । यही कारण है कि हिन्दुओं का धार्मिक चिन्ह स्वस्तिका) (जर्मनों का धार्मिक चिन्ह ), (मुसलमानों का धार्मिक चिन्ह ), + (इसाइयों का क्रास ) आदि सब मण्डल
' में परिवर्तित हो सकते हैं। इस मत का आधार यह है कि मस्तिष्क केन्द्र में सैल्स ( cells) मण्डलाकार है, यही कारण है कि छोटे बच्चे जब स्वतन्त्र रूप से ड्राइंग खींचते हैं तो वे प्रायः अपने मस्तिष्क की सैल्स की प्रतिछाया स्वरूप गोल-मोल लकीरें होती हैं। इससे प्रगट है कि अङ्गों की उत्पत्ति रेखाओं से "हुई है; और क्योंकि अनेकों भापा-लिपियों में दो एक
अङ्क ऐसे मिलते हैं जिनका रूप किसी न किसी वण से मिलता है जैसे उद(१) अरबी 1 (अलिफ) से. (३) फा० (सीन) के शोशे, से, हिन्दी ५ का प्राचीन रूप चिह्न नं० १. हिन्दी के 'प' वर्ण से रोमन ५ १० क्रमशः अँग्रेजी के v और x वर्ण सं. ग्रीक १, २, १८, २०
आदि ग्रीक वर्ण अलफा, बीटा, आइअोटा, काप्पा यादि (क्रमशः चिह्न नं० २, ३, ४, ५) से मिलते है। अतः अङ्कों की उत्पत्ति सम्भवतः वर्णों से पूर्व हो चुकी थी। अतएव रेखा-लिपि किसी समय एक नियमित तथा ससम्बद्ध लिपि अवश्य थी। सम्मवतः जब रज्जु लिपि से काम न चला होगा तो रेखा लिपि का प्रचार हुआ होगा। प्राचीन काल में भिन्नाकार नक्काशीदार लकड़ी अथवा पत्थर काम में लाए जाते थे। अफ्रीका की कुछ जङ्गली जातियों में रेखालिपि का अब भी प्रचार है। यहाँ यह बात याद रखनी चाहिये कि रेखा-लिपि से वर्णों की अपेक्षा अङ्कों की उद्भावना अधिक सम्भव है।
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