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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २ खेलोसहि लब्धि, ३ जलोसहि लन्धि, ४ मलोसहि लब्धि, ५ विद्योसहि लन्धि, ६ सर्वोसधि लब्धि ७ आसगअविषत्त्व ८ दृष्टि विषत्व।। रस लन्धि छ प्रकार की होती है । यथा-१ वचन विषत्व, दष्टि विषत्व, क्षीरामवित्व, मधुश्रावित्व, रुप्पि आश्रवित्व, अमृतावित्व । क्षेत्र लब्धि दो प्रकार की होती है-१ अक्षीण महानसत्व, २ अक्षीण महा लयत्व । सभी गणधर इन लब्धियों से सम्पन्न होते है । १८ सर्वायु-इन्द्रभूति की बाणवे वर्ष, अग्भूिति की चौहत्तर वर्ष वायुभूति की सत्तर वर्ष, व्यक्त की अस्सी वर्ष, आर्य सुधर्मा स्वामी की मौ वर्ष, मण्डित की यासी वर्ष, मोरियपुत्र की पंचाणवे वर्ष, अमित की • अठत्तर वर्ष, अचलभ्राता को बहत्तर वर्ष, मेतार्य को बासठ वर्ष और प्रभास स्वामी की सर्वायु चालीस वर्ष की थी। १९-२० मोक्ष स्थान व तप-सभी गणधरों का निर्वाण मासभक्तोपवास व पादोपगमन पूर्वक राजगृह नगर के वेभारगिरी पर्वत पर हुआ । प्रथम और पंचम गणधर के अतिरिक्त नौ गणधर भगवान महावीर की विद्यमानता में ही मोक्ष प्राप्त हुए। इन्द्रभूति और सुधर्मास्वामो भगवान के निर्वाणोपरान्त माक्ष गए। गौतम स्वामी प्रभूति गणधर प्रभु-प्रवचनाम्न वन, के मधुर फल सुग्रहीत नामधेय महोदय हमें प्राप्त हो। यह गणधर कल्प जो प्रतिदिन प्रातःकाल प्रसन्न चित्त से पढता है, उसके करतल में सभी कल्याण परमराएं निवास करती है। संवद १३८६ विक्रमीय के ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी बुधवार के दिन रचित जिनप्रभसूरि कृत गणधर कल्प चिरकाल तक जयवंता हे। For Private and Personal Use Only
SR No.020451
Book TitleKundalpur
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherMahendra Singhi
Publication Year
Total Pages26
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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