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भावमादा,कत्ता सो होदि तस्स भावस्स। (स.ज.वृ.९१) कत्ता भोत्ता आदा, पोग्गलकम्मस्स होदि ववहारा। (निय. १८) कत्तारं (द्वि.ए.) कत्ति वि [कर्तृ] करने वाला, सम्पादक। अणुमंता व कत्तीणं।
(निय.७७) कत्तीणं (ष.ब.) कद वि [कृत] किया हुआ, बनाया हुआ। (स.२७, १०५, निय.६३, भा. १३३) जीवेण कदं कम्म। (स. १०५) जोधेहिं कदे
जुद्धे, राएण कदं ति जंपदे लोगो। (स.१०६) कद्दअ अक दि] नष्ट करना, क्षय करना। पेच्छंतो कद्दए कालो।
(द्वा.१०) कद्दम पुं [कर्दम] कीचड़,रज। (स.२१८,२१९)कद्दममज्झे जहा
लोहं। (स.२१९) कमंडल पुं न [कमण्डल] साधुओं का लकड़ी या मिट्टी का पात्र ।
(निय. ६४) पोत्थइ कमंडलाइं। कमलिणी स्त्री [कमलिनी पद्मिनी, कमलिनी। (भा. १५३) जह
सलिलेण ण लिप्पइ कमलिणिपत्तं सहावपयडीए। (भा. १५३) कम्म पुंन [कर्मन् कर्म,जीव के द्वारा ग्रहण किया गया अत्यन्त सूक्ष्म पुद्गलपरिणाम। (पंचा.५८, स. १९, निय.१०६, भा. १०७, मो. ५६, बो. ११) जो कम्मजादमइओ। (मो.५६) -अट्ठ वि [अष्ट] 1. अष्टकर्म, आठकर्म । (बो.११,५२) ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, मोहनीय, आयु,नाम, गोत्र और अन्तराय। 2. पुं [अर्थ] कर्म के लिए, कर्म के हेतु। -उदय पुं
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