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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 76 दु परिणामो (स.१३८, १४०) एकम्मि चेव समए। (प्रव.जे.१०) एक्क स [एक] एक, अकेला। एक्कं खलु तं भत्तं । (प्रव. चा. २९) -अट्ठ पुं [अर्थ] एकरूप,एक पदार्थ (पंचा.३४,स.२७) -काय पुं [काय] एक शरीर। सव्वत्य अत्यि जीवो, ण य एक्को एक्ककाय एक्कट्ठो। (पंचा.३४)-ठाण न [स्थान] एकस्थान, एक जगह।दिण्णण्णं एक्कठाणम्मि। (सू.१७)-एक्क स [एक] एक-एक, प्रत्येक। (भा.३७) -मेत स [मात्र] एकमात्र, केवल एक। (स.२०४) तं होदि एक्कमेत्तपदं। (स.२०४) एग स [एक] अकेला, एक। (पंचा.११२,स.२०३,प्रव.जे.७२ भा. ५९ द. १८) एगं जिणस्स रूवं। (द. १८) एगो य मरदि जीवो, एगो य जीवदि सयं । एगस्स जादि मरणं, एगो सिज्झदि णीरयो।। (निय.१०१) -अंत पुं [अन्त] एकान्त,तत्त्व,प्रमेय,विशेष। एगंतेण हि देहो। (प्रव. ६६) -त्त वि [त्व] 1. एकत्व, एकरूप, पहले जैसा। एगत्तप्पसाधगं होदि। (पंचा.४९) 2. एकत्व, एक भावना का नाम। (द्वा.२) अद्धवमसरणमेगत्त। एक्को करेदि कम्मं एक्को हिंडदि य दीहसंसारे। एक्को जायदि मरदि य तस्स फलं भुंजदे एक्को।। (द्वा. १४) एगागी वि एकाकी अकेला, असहाय। केई मज्झंण अहयमेगागी। (मो.८१) एतदट्ठ वि [एतदर्थ] इस प्रयोजन हेतु। (पंचा.१०४) एत्तो अ [इतः] इससे,यहां से। (स.५४, २५०) णाणी एत्तो दु विवरीदो। For Private and Personal Use Only
SR No.020450
Book TitleKundakunda Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherDigambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size9 MB
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