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उवगद वि [उपगत] पास आया हुआ, ज्ञात, जाना गया। णिव्वाणमुवगदो वि। (स.६४) उवगृहण न [उवगूहन] प्रच्छन्न, गुप्त, सम्यग्दृष्टि का एक अङ्ग।
जो सिद्धभक्तिजुत्तो, उवगृहणगो दु सव्वधम्माणं। सो उवगृहणकारी, सम्मादिट्ठी मुणेयव्यो। (स.२३३) उवग्रहण रक्खणाए य(चा.११)-ग वि [क] सम्यग्दृष्टि,उपगूहन
अङ्गधारी। (स.२३३) उवघाद पुं उपघात विनाश, विराधन। सच्चित्ताच्चित्ताणं करेइ
दव्वाणमविधादं। (स.२३८, २४३) उवज्झाय पुं [उपाध्याय उपाध्याय, अध्यापक, पंचपरमेष्ठी में
चतुर्थ परमेष्ठी की संज्ञा। रयणत्तयसंजुत्ता, जिणकहियपयत्थदेसयासूरा। णिक्कंखभाव सहिया, उवज्झाया एरिसा होति।। (निय.७४) उवट्ठिद वि [उपस्थित] उपस्थित, मौजूदगी, प्राप्त।
(प्रव.चा.७,भा.५७) उवदिट्ठ वि [उपदिष्ट] कथित, प्रतिपादित। णिम्ममत्तिमुवदिट्ठो।
(निय.९९) उवदिस सक [उप+दिश्] उपदेश देना, समझना।
ववहारेणुवदिस्सदि। (स.७) उवदिसद वि [उप+दिशत्] उपदेश देने वाला। उवदिसदा खलु
धम्म । (प्रव. जे.५) उवदेस पुं [उपदेश] व्याख्यान, प्ररूपण, प्रवचन, कथन।
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