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69 में तत्पर। उग्गो उम्मग्गपरो, उवओगो जस्स सो असुहो (प्रव.जे.६६) -य वि [क] उन्मार्गक, विपरीत मार्ग पर चलने वाला। (सू.२३) सेसा उम्मग्गया सव्वे। (सू. २३)। उम्मुक्क वि [उन्मुक्त] विमुक्त, रहित। (भा.९३) सोस उम्मुक्का।
(भा.९३) उयर न [उदर] पेट, कुक्षि, उदर। उयरे वसिओ सि चिरं, णव-दस-मासेहिं पत्तेहिं । (भा.३९)-अग्गिसंजुत्त [अग्निसंयुक्त उदराग्नि से युक्त। मंसवसारुहिरादि, भावे उयरग्गिसंजुत्तो। (स.१७९) उवइट्ठ वि [उपदिष्ट] कथित, प्रतिपादन। (द.२, भा.६, मो.७) दंसणमूलो धम्मो, उवइट्ठो जिणवरेहिं सिस्साणं। (द.२) उवउत्त/उवजुत्त वि [उपयुक्त न्यायसंगत, युक्तियुक्त। उवजुत्तो
सत्तभंगसब्भावो। (पंचा.७२) उवएस पुं [उपदेश] उपदेश, शिक्षा, कथन, प्रतिपादन। ववहारस्स दरीसणमुवएसो वण्णिदो जिणवरेहिं! (स.४६) उवएसो (प्र.ए.स.४६) उवएसं (द्वि.ए.निय.१०९) उवओग पुं. उपयोग] ध्यान, ज्ञान, चैतन्यधारा। (पंचा.१६, स. ८९, १००, प्रव. १५, निय. १०) उवओगो अण्णाणं। (स. ८८) उवओगो (प्र. ए.स.९०, निय.१०) उवओगा (प्र. ब. स. १००) उवओगो उवओए (द्वि.ब.स.१८१) उवओगस्स (ष.ए.स.९४,९५) उवओगम्हि (स. ए.स. १८२) -अप्पग पुं [आत्मक] उपयोगात्मक, उपयोगस्वरूप आत्मा। अह दे अण्णो
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