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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 66 (पंचा.५८) -ठाण पुं न [स्थान] उदयस्थान, उदयस्थिति। (स.५३, निय.४०) जीवस्स ण उदयठाणा वा। -यर वि [कर उदय करने वाला, अभ्युदय करने वाला। (बो.२४) उदययरो भव्बजीवाणं (बो.२४) -विवाग पुं [विपाक] उदय-परिणाम,सुख-दुःखादि भोगरूप कर्मफल का परिणाम | उदय-विवागो विविहो। (स.१९८) -संभव पुं[संभव उदय की संभावना। पुग्गलकम्मुदयसंभवा जम्हा। (स.१११) उदिण्ण वि [उदीर्ण] उत्पन्न हुए, प्रकट हुए। जं सुहमसुहमुदिण्णं । (पंचा.१४७) -तण्हा स्त्री [तृष्णा] उत्पन्न हुई तृष्णा, उत्पन्न इच्छा। (प्रव.७५) ते पुण उदिण्णतण्हा, दुहिदा तण्हादि विसय-सोक्खाणि । (प्रव.७५) उदिद वि [उदित] उदय में आए हुए, उदयागत। णाणी पुण कम्मफलं जाणदि उदिदं ण वेदेदि। (स.३१७) उदु त्रि [ऋतु] ऋतु। (पंचा.२५) मासोदुअयण । (पंचा.२५) उस पुं [उइंस] डॉस-मच्छर, खटमल, मधुमक्खी। (पंचा.११६) उइंसमसयमक्खिय। उद्दिा वि [उद्दिष्ट] 1.कथितं, प्रतिपादित, उपदेशित। अदा णाणपमाणं, गाणं णेयप्पमाणमुद्दिठें। (प्रव.२३) अप्पडिकम्मत्तिमुद्दिट्ठा। (प्रव.चा.२४) 2. उद्देश्य, निमित्त, देशविरतश्रावक के ग्यारह व्रतों में उद्दिष्टत्याग एक व्रत। (चा.२२) उद्दिट्ठदेसविरदो य। उद्देसिय वि [औद्देशिक लक्ष्य, अभिप्राय। आधाकग्मं उद्देसियं। For Private and Personal Use Only
SR No.020450
Book TitleKundakunda Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherDigambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size9 MB
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