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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir डोरारहित, धागा रहित। सूत्रपाहुड में सूत्र (आगम) जाता को निपुण और संसार को नाश करने वाला कहा है। जो इससे रहित होता है वह सूत्र (धागा) रहित सुई की तरह संसार में खो जाता है। सुत्तम्मि जाणमाणो, भवस्स भवणासणं च सो कुणदि। सूई जहा असुत्ता, णासदि सुत्ते तहा णो वि।। (सू.३) असुद्ध वि [अशुद्ध] अशुद्ध, अपवित्र, विभावमय। जाणतो दु असुद्धं, असुद्धमेवप्पयं लहइ। (स.१८६) परिणामम्मि असुद्धे (स.ए.भा.४) असुद्धा (प्र.ब.भा.६७)-भाव पुं भाव] अशुद्धभाव, अशुद्ध परिणाम। मच्छो वि सालिसिक्थो असुद्धभावो गओ महाणरयं। (भा.८८) असुभ न [अशुभ] अशुभ, अप्रशस्त। -उवओगरहित वि [उपयोगरहित] अशुभोपयोग से रहित। (प्रव. चा. ६०) असुर पुं [असुर देवजाति विशेष, भवनवासी देवों का एक भेद। एस सुरासुरमणुसिंदवंदिदं। (प्रव.१)मणुआसुरामरिंदा। (प्रव. असुह न [अशुभ अशुभ, पाप कर्म, नामकर्म का एक भेद। (पंचा. १४२, स. १०२, प्रव. ९, निय. १४३, भा. १६) किध सो सुहो वा असुहो। (प्रव. ७२) -उदय पुं [उदय] अशुभोदय, अशुभोत्पत्ति। असुहोदयेण आदा कुणरो तिरियो भवीय णेरइयो। (प्रव. १२) असुहं रागेण कुणदि जदि भावं। (पंचा. १५६) -भाव पुं [भाव] अशुभ भाव, अशुभपरिणति। वट्टदि जो सो समणो, अण्णवसो होदि असुहभावेण। (निय. १४३) -लेस्सा स्त्री [लेश्या For Private and Personal Use Only
SR No.020450
Book TitleKundakunda Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherDigambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size9 MB
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