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(चा.१२) जीवो आराहतो, जिणसम्मत्तं अमोहेण । अयदाचार वि [अयताचार प्रयत्नपूर्वक आचरण नहीं, अयत्नाचार पूर्वक प्रवृत्ति करने वाला। (प्रव.चा.१७,१८) अयदाचारो समणो। (प्र.ए.प्रव.चा.१८) अयदाचारस्स णिच्छिदा हिंसा (ष.ए.प्रव.चा.१७) अयाण वि [अज्ञ] अज्ञानी, अजान, नहीं जानने वाला, अनभिज्ञा
अप्पाणमयाणंता (व.कृ.स.३९) (हे.न्त-मणौ ३/१८०) अरद वि [अरत ] अनासक्त, रत नहीं होने वाला। दब्बुवभोगे
अरदो। (स.१९६) अरदि स्त्री [अरति] अरति, रति नहीं होना, नोकषाय का एक भेद । (स. १९६) -भाव पुं [भाव] अरतिभाव। जह मज्जं पिवमाणो, अरदिभावेण मज्जदि ण पुरिसो। (स.१९६) अरय पुं [अरक] धुरी, पहिये के बीच भाग का काष्ठ। (शी.२६) -घरट्ट पुं [घरट्ट.दे] अरघट्ट, अरहट, पानी का चरखा। (शी.२६) संसारो भगिदव्वं अरयघरट्टे व भूदेहि । अरस पुं [अरस] रस सहित, नीरस। (पंचा. १२७, स.४९) धम्मत्यिकायमरसं। (पंचा.८३), अरसमरूवगगंधं । (स.४९) अरहंत पुं [अर्हन्त्] जिन भगवान्,जिसने चार घातियां कर्मों को नष्ट कर दिया है। (पंचा.१६६, प्रव. ४,१४, शी.४०)अरहते माणुसे खेत्ते। (प्रव.३) अरहंते (द्वि.व.) यहाँ चतुर्थी के योग में द्वितीया का प्रयोग है। अरहताणं ( च.ब.प्रव.४) किच्चा अरहंताणं, सिद्धाणं तह णमो गणहराणं। अज्झावयवग्गाणं
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