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समावण्ण देखो समवण्ण। विवेयसमावण्णो। (स.३१८) समायर सक [समा+चर] आचरण करना। (भा.३०,७७) तं
रयणत्तय समायरह। समायरह (वि. आ.म.ब.भा.३०) समारद्ध वि [समारद्ध] प्रारम्भ, आरम्भ, शुरुआत्। (प्रव.जे.३२, प्रव.चा.११) कम्मं जीवेण जं समारद्धं । (प्रव.जे.३२) समास पुं [समास] संक्षेप, संकोच, सम्मिश्रण, समाहार। (स.३५३,३६०,बो.२,द.१,मो.१३) वत्तव्वं से समासेण| (स.३६०) समास अक [सम्+आस्] रहना,बैठना,प्राप्त होना। (प्रव.५)
पहाणासमं समासेज्ज। समासेज्ज (वि.उ.ए.प्रव.५) समाहि पुं स्त्री[समाधि] चित्त की स्वस्थता, समभाव। (निय.१०४,
भा.७२) समाहिं पडिवज्जए। (निय.१०४) समाहिद वि [समाहित] संयुक्त, तन्मय, तत्पर। तिहिं तेहिं
समाहिदो हु जो अप्पा। (पंचा.१६१) समित वि [शमित] शान्त किया हुआ, शान्त। (प्रव.चा.६८) -कसाय पुं कषाय] कषायों से शान्त, जिसकी कषायें शान्त हो गई हो। समिदकसायो तवोधिगो चावि। (प्रव.चा.६८) समिदि स्त्री समिति सम्यक्प्रवृत्ति, उपयोगपूर्वक की जाने वाली प्रवृति। (स.२७३, प्रव.चा.८, निय.११३, सू.२१) नियमसार में पांच समितियों का विवेचन पृथक्-पृथक् रूप में किया गया है। दिखो-६१ से ६५) समिद्ध वि [समृद्ध] अतिशय सम्पत्तिवाला, धनवान्। (प्रव.२२)
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