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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 277 ववसायि वि व्यवसायिन्] उद्यमशील, व्यवसायी। (निय.१०५) सूरस्स ववसायिणो। ववहार पुं [व्यवहार] 1. नय विशेष, वस्तुपरिज्ञान का एक दृष्टिकोण। (पंचा.७६,स.४८,प्रव.जे.९७,निय.१३५,मो.३२, द.२०)व्यवहार अभूतार्थ है। (स.११) -ण/णय पुं [नय] व्यवहारनय। (स.२७२, निय.४९) ववहारणयो भासदि। (स.२७) -देसिद वि दिशित] व्यवहार से कथित, व्यवहार से प्रतिपादित विवहारदेसिदा पुण। (स.१२)-भासिब वि [भाषित] व्यवहार से कथित ववहारभासिएण उ। (स.३२४) 2. गणित, एक संख्या का मापक (व्यवहारपल्य),जीवों की संख्या का मापक (व्यवहार राशि)। ववहारणायसत्येसु। (शी.१६) ववहारि पुं [व्यवहारिन्] व्यवहारी, व्यापारी, व्यवहार क्रिया में लीन। लोगा भणंति ववहारी। (स.५८) ववहारिअ वि [व्यावहारिक] व्यवहार सम्बन्धी, व्यवहार कुशल। (स.४१४) ववहारिओ पुण णओ। (स.४१४) ववहारिण पुं [व्यवहारिन्] व्यवहार क्रिया प्रवर्तक। (प्रव.चा.१२) वस अक [वस्] रहना, निवास करना। (भा.४०) वसह पुं वृषभ] उत्तम, श्रेष्ठ, प्रमुख, आदिनाथ का एक नाम। (मुणिवरवसहा णि इच्छंति। (बो.४३) वसिअ वि वषित रहा हुआ, स्थित रहा। (भा.१७, २१) उयरे वसिओसिचिरं। (भा.३९) वसिट्ठ पुं विशिष्ट] एक मुनि का नाम। (भा.४६) -मुणि पुं [मुनि For Private and Personal Use Only
SR No.020450
Book TitleKundakunda Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherDigambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size9 MB
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