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267 -भाव पुं भाव लिङ्गीभाव। उवहसदि लिंगिभावं। (लिं.३) -रूव पुं [रूप] लिङ्गी का रूप । (लिं.६) लिप्प अक [लिप्] लिप्त होना, आसक्त होना। (सू.२४१,
भा.१५३)लिप्पदि कम्मरएण दु। (स.२१९) लिप्पदि (व.प्र.ए.स.२१९) लिप्पंति (व.प्र.ब.स.२७०) लुक्ख पुं [रूक्ष] रूक्ष,रूखा,स्निग्धता से रहित। (प्रव.जे.७१) णिद्धो वा लुखो वा। (प्रव.जे.७१) णिद्धा वा लुक्खा वा।
(प्रव.शे.७३) -त्त वि त्व] रूक्षत्व, रूक्षता। (प्रव.जे.७२) लुण सक [लू] छेदना, काटना। (भा.१५७) लुद्ध वि [लुब्ध] लोभी, लम्पट, लोलुप। (शी.२१) -विस ' [विष]
लोभी को विष । (शी.२१) जह विसयलुद्धविसदो। लुल्ल वि दि] लूला, खञ्ज, लंगड़ा। ते होति लुल्लमूआ। (द.१२) ले सक [ला] लेना, ग्रहण करना। (सू.१८, मो.२१) जह लेइ
अप्पबहुयं। (सू.१८) लेवि (अप.सं.कृ.मो.२१) लेव पुं [लेप] लेपन, उवटन, मालिश, मल्हम। (शी.९,प्रव.चा.
५१)कुव्वदु लेवो जदि वियप्पं । (प्रव.चा.५१) लेस्सा स्त्री [लेश्या] आत्मा का परिणाम विशेष| कषाय से
अनुरजित योग की प्रवृत्ति को लेश्या कहते हैं। संजमदंसणलेस्सा। • (बो.३२) कृष्ण, नील, कापोत, पीत, पद्म, और शुक्ल ये छह
लेश्यायें हैं। लोअ/लोग पुं [लोक] 1.लोक, संसार, जगत्। जहां जीव, अजीव, धर्म, अधर्म, आकाश, और काल ये छह द्रव्य पाये जाते हैं।
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