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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 264 अंगुल प्रदेश में छियानवें-छियानवें रोग होते हैं, शेष समस्त शरीर में कितने कहे गये , यह कौन कहे? (भा.३७) -गि पुं स्त्री [अग्नि रोग रूपी आग। रोयग्गी जा ण डहइ देहउडिं। (भा.१३१) रोस पुं रोष] गुस्सा, क्रोध, द्वेष । (निय.६) छुहतण्हभीरुरोसो। रोह अक [रुह] उत्पन्न होना, उगना। ण वि रोहइ अंकुरो य महिवीढे। (भा.१२५) ल लंबिय वि [लम्बित] लटका हुआ। लंबियहत्थो गलियवथो। (भा.४) लक्ख सक [लक्षय] जानना, पहचानना, देखना। (चा.१२,बो.२०) तह णवि लक्खदि लक्खं। (बो.२०) लखदि (व.प्र.ए.) लक्खिज्जइ (व.प्र.ए.चा.१२) लक्खंतो (व.कृ.प्र.ए.) लक्ख बि [लक्ष्य] 1.उद्देश्य, निशाना, देखने योग्य। (बो.२०) तह णवि लक्खदि लक्खं। 2.पुं न [लक्ष] लाख,संख्या विशेष। (भा.१२०) चउरासीगुणगणाण लक्खाई। लक्खण पुंन [लक्षण] वस्तुस्वरूप, भेदक चिन्ह, संकेत, विशेषता। (स.६४,प्रव.शे.५,चा.१२,बो.३७) एवं पुग्गलदव्वं जीवो तह लक्खेणेण मूढमदी। (स.६४) लज्जा स्त्री [लज्जा] लज्जा, शरम, अदब। (द.१३) लज्जगारवभएण। For Private and Personal Use Only
SR No.020450
Book TitleKundakunda Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherDigambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size9 MB
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