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यं अ [यत्] जो, जो कि। (स.२०१) यं तु सब्बागमधरो वि। याण सक [ज्ञा] जानना। (स.३९०-४०१) जम्हा धम्मो ण याणए किंचि। (स.३९९)
रअ वि [रत] अनुरक्त, आसक्त, लीन। (मो.११, भा.३१) अप्पा
अप्पम्मिरओ। (भा.३१) रइ स्त्री [रति] कामक्रीड़ा, सुरत, मैथुन, रति, नोकषाय का एक
भेद। (निय.६, मो.१६) जो दु हस्सं रई। (निय.१३१) रइय वि [रचित] बनाया हुआ, निर्मित। (चा.४५) रइयं
चरणपाहुडं चेव। (चा.४५) रउरव वि [रौरव भयंकर, घोर, रौरव नामक नरक। (भा.४९)
पडिओ सो रउरवे णरए। (भा.४९) रंग सक [रङ्गय्] रंगना, मोहित करना। रंगिज्जदि अण्णेहिं।
(स.२७८) रंगिज्जदि (व.प्र.ए.) रंज सक [रन्जय्] रंग लगना, राग युक्त होना, अनुरक्त होना।
(प्रव.जे.५९) कम्मेहिं सो ण रंजदि । रंजण न [रज्जन] खुश करना,प्रसन्न। (भा.९०)माजणरंजन
करणं। (भा.९०) रक्ख सक [रक्ष्] रक्षण करना, पालन करना। (लिं.५, शी.१२) संमूहदि रक्खेदि य। (लिं.५) रक्खेदि (व.प्र.ए.लि.५) रक्खंताणं (व.कृ.ष.ब.शी.१२) सीलं रक्खंताणं ।
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