SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 243
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 230 स्थितिबन्ध, अनुभागबन्ध और प्रदेश बन्ध। -कत्तार पुं [कर्तृ] बन्ध के कर्ता। (स.१०९) -कहा स्त्री [कथा] बन्धकथा। (स.४) कथा के भेदों में काम,भोग और बन्ध कथा,इन तीन कथाओं का वर्णन किया गया है। (स.३)-कारण न [कारण] बन्ध का कारण,बन्ध का निमित्त। (प्रव.७६,निय.१७३)जीवस्स य बंधकारणं होई। (निय.१७४)-ग वि [क] बन्धक, बांधने वाला। (स.१७६,प्रव.चा.१८)-ठाण न [स्थान] बन्धस्थान। (स.५३) -समास पुं[समास] बन्ध समास,बन्धसंकोच,बन्ध का संक्षेप। (स.२६२,प्रव.जे.८७) बंधण न [बन्धन] कर्म बन्ध का कारण। (स.२९०, निय.६८) -बद्ध वि [बद्ध] बन्धनयुक्त। (स.२९१)-य वि [क] बन्धन करने वाला। (स.२८८)-वस वि [वश] बन्धनवश,बंधन के अधीन। (स.२८९) बंधव पुं [बान्धव] भाई, भ्राता, मित्र। (भा.४३)। बंधु पुं [बन्धु] भाई, मित्र। (प्रव.चा.२, द.७, मो.७२) -वग्ग पुं [वर्ग] बन्धुसमूह। (प्रव.चा.२) बंभ पुं.न [ब्रह्म] ब्रह्म, ब्रह्मचर्य। (स.२६४, चा.२२) -चेर न [चर्य] ब्रह्मचर्य, मैथुन विरति, व्रतों का एक भेद। (द.२८, शी.१९) बज्झ सक [बन्ध] बांधना, कसना, जकड़ना। (स.१७८, मो.१५, द.१७) णाणी तेण दु बज्झदि। (स.१७२) बद्ध वि [बद्ध] बंधा हुआ, जकड़ा हुआ। (स.२३, १४१, १८०) जे For Private and Personal Use Only
SR No.020450
Book TitleKundakunda Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherDigambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy