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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 223 बुद्धिवाला, पाप के वशीभूत, पापासक्तबुद्धि। (लिं.५) -रहिद वि रहित] पाप रहित। (द.६) -हर वि [हर] पाप को हरण करने वाला। (मो.८४) -हेतुपुं हितु] पाप के कारण। (निय.६७) पास पुं [पार्श्व] पार्श्वनाथ, तेइसवें तीर्थङ्कर का नाम। (ती.भ.५) पासंडि वि [पाखण्डिन्] पाखण्डी, ढोंगी, लोकप्रतिष्ठा के लिए धर्माचरण करने वाला। (स.४०८, ४१०, भा.१४१) पासअ वि [दर्शक] देखने वाला, दृष्टा, दर्शक। (स.३१५) पासत्थ वि पार्श्वस्थ छल-कपट करने वाला, अपने वेश के अनुकूल न चलने वाला, शिथिलाचारी। (भा.१४, लिं.२०) पासुग वि [प्रासुक] परिशोधित, परिमार्जित, जन्तुरहित, हरितपने से रहित। (निय.६१,६३,६५)-भूमि स्त्री [भूमि] प्रासुक भूमि, प्रासुक क्षेत्र। (निय.६५) -मग्ग पुं [मार्ग] प्रासुक मार्ग, जो रास्ता चलना आरम्भ हो चुका हो। (निय.६१) पाहुड न [प्राभृत] 1. अध्याय विशेष, प्रकरण विशेष। (चा.२, मो.१०६, लिं.१) 2. भेंट, उपहार। पि अ [अपि] भी, निश्चय, ही। (स.१६९, प्रव.जे.११, निय.१३५) अट्ठविहं पि। (स.४५) पिंड पुं [पिण्ड] 1. समूह, संघात, स्कन्ध रूप। (प्रव.जे.६९) पिंडो परमाणुदव्वाणं । (प्रव.जे.६९)2.आहार,भोजन। (सू.२२) भुंजइ पिंडं सुएयकालम्मि। पिंडी स्त्री [पिण्डी] गोलाकार वस्तु, ताड वृक्ष, बांस आदि। (स.२३८)। For Private and Personal Use Only
SR No.020450
Book TitleKundakunda Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherDigambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size9 MB
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