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वनस्पति, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रय और पञ्चेन्द्रिय ये दश स्थान हैं। -पुबि क्रि.वि. [पूर्वम्] दशपूर्व । दसपुब्बीओ वि किं गदो णरयं। (शी.३०) वियप पुं [विकल्प] दश प्रकार,दशभेद। (भा.१०५) विज्जवच्चं दसवियपं। -विह वि [विध] दश प्रकार
का।अबभं दसविहं पमोत्तूण। (भा.९८) दह त्रि [दश] दश संख्या विशेष । (बो०३४)-प्राण पुं [पाण] दश
प्राण | पाँच इन्द्रिय, तीन बल, आयु और श्वासोच्छवास । दा सक [दर्शय] दिखलाना, दर्शन कराना। (स.५) जदि दाएज्ज
पमाणं.। दाए (वि. आ.प्र.ए.) दाएज्ज (वि. आ.उ.ए.) दाण पुं न [दान] दान, त्याग। (प्रव.६९,द्वा.३१) -रद वि [रत]
दान में तत्पर, दान में संलग्न । (प्रव.चा.६९) दारा स्त्री [दारा स्त्री,औरत। (मो.१०) दारिद्द न [दारिद्र] निर्धनता, दीनता। (बो.४७) दारुण वि [दारुण] विषम, भयंकर, भीषण। (भा.९) दि सक [दा] देना। (पंचा.६७,स.२५२,२५५) दिति (व.प्र.ए.द.
९) दिता (व.कृ.पंचा.७) दिंतु (वि. आ.प्र.ब.भा.१६२) दिक्खा स्त्री [दीक्षा] प्रब्रज्या, दीक्षा,संन्यास। (बो.१५,१७,२५,
भा.११०) जं देइ दिक्खसिक्खा। (बो.१५) दिट्ट वि [दृष्ट] देखा हुआ,अवलोकित। (द.३०) दिट्ठा सं.कृ. [दृष्ट्वा ] देखकर। (प्रव.चा.५२,६१) दिट्टि स्त्री [दृष्टि] 1.नजर, दृष्टि। लोगालोगेसु वित्थडा दिट्ठी। (प्रव.६१,६७)2.सम्यग्दृष्टि, सम्यग्दर्शन। दिट्ठी अप्पप्यासया चेव
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