SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 185
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 172 (पंचा.११३) ताली स्त्री [ताली] ताड़ का वृक्ष, वृक्ष विशेष। (स.२३८,२४३) तावं/तावं अ तावत्] तब तक, उतने समय तक। (स.१९, २८५, निय.३६, भा.१३१, लिं.४) कुव्वइ आद तावं। (स.२८५) तावदि वि [तावत् उतना। (प्रव.७०) भूदो तावदि कालं। तावदिअ वि [तावत्] उनमें, उतना। तावदिओ जीवाणं। (पंचा.१९) तावुद अ तावत् तब तक। अण्णाणी तावुद । (स.६९) त्ति अ [इति] इस प्रकार, ऐसा। दुक्खिदसुहिदे करेमि सत्ते त्ति। (स.२५३) त्ति त्रि त्रि] तीन, संख्या विशेष। (पंचा.१११) -गुत्त वि [गुप्त] तीन गुप्तिवाला। (प्रव.चा.४०, निय. १२५) -गुणिद वि [गुणित] तीन गुणा, तीन से गुणित। (प्रव, क्षे.७४)-जगवंद वि [जगवंद] तीनों लोकों में पूजित। सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, वीतरागी, अरहन्त तीनों लोकों में पूजित होते हैं। तिजगवंदा अरहंता। (चा.१) -पयार पुं [प्रकार] तीन प्रकार। तिपियारो सो अप्पा। (मो.४)-वग्ग' [वर्ग] तीन वर्ग,तीन समूह धर्म,अर्थ और काम। -वियप पुं [विकल्प] तीन विकल्प, तीन प्रकार। अप्पाणं तिवियप्पं । (निय.१२) -विहसुद्धि स्त्री [विधशुद्धि] तीन प्रकार की शुद्धि। मन, वचन और काय की शुद्धि। (भा.१३५) परंपरा तिविहसुद्धीए। (भा.१३५) तिण्हा स्त्री तृष्णा] प्यास, पिपासा, इच्छा। (निय.१७९, भा.२३) For Private and Personal Use Only
SR No.020450
Book TitleKundakunda Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherDigambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy